युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
तुलसी महाप्रज्ञ के पटधर, गण को शिखर-चढ़ाए।
गण गगनांगण के गणेश की विरुदावलियां गाएं।।
आभारी है शासनमाता का गण सारा
युगप्रधान सम्मान का यह सीन प्यारा
दिव्य लोक से आओ निरखो दिव्य नजारा
अवनि-अम्बर गूंज रहा जय यश का नारा
कीर्तिधर की कीर्तिपताका चिहुंदीशी में फहराएं।।
हे युगप्रधान! अभिनव युग का निर्माण करो तुम
समता के सम्पोषण का संचार करो तुम
मैत्री-करुणा का घर-घर विस्तार करो तुम
संघ भक्ति, गुरु भक्ति का संस्कार भरो तुम
भाग्यविधाता, शिवसुखदाता सुरनर महिमा गाएं।।
हरता है संताप ताप अभिधान तुम्हारा
शीतल सुरतरु की छाया सानिध्य तुम्हारा
चंचल मन को शांत बनाए वचन तुम्हारा
भाग्य लता लहराएं पा आशीष तुम्हारा
ज्योतिपुंज से आलोकित हो ज्योतिर्मय बन जाएं।।