युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
प्रभो! सांसों का इकतारा तू, तिमिर में उजियारा तू
भक्तों का सबल सहारा तू, तेरापंथ सितारा तू
एकादशमेश श्री गणेश के चरणों में करते वंदन हैं।।
श्रद्धासिक्त समर्पण है, जन्मों की आस्था अर्पण है।
खिलता-खिलता मधुवन है, अतिमनभावन जीवन है।
गुरुवर महाश्रमण का नाम सबके लिए संजीवन है।।
जगवत्सल! विश्वास तुम्हीं, भक्तों के आश्वास तुम्हीं।
उन्नति के आकाश तुम्हीं, जन-जन मन की आश तुम्हीं।
तेरे पदचिन्हों पर चलकर, टूटेंगे अध- बंधन है।।
देव! हृद-तंत्री के तार तुम्हीं, आस्था के आधार तुम्हीं।
करुणा के अवतार तुम्हीं, मधुरिम जीवन धार तुम्हीं।
वर्धापन के शुभ अवसर पर भाव प्रवण अभिनंदन है।।
भैक्षवगण की जान तुम्हीं, प्राणों के महाप्राण तुम्हीं।
संतों की प्रभो! शान तुम्हीं भक्तों के भगवान तुम्हीं।
देव! दृष्टि को अंजाम देने नित्य चले संघ स्यंदन है।।