युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
तुम युगप्रधान क्यों कहलाएं।
हमको भी कुछ बतलाएं।।
राम को दिल में अधिवास दिया,
श्रम हस्ताक्षर सहवास किया।
नित समता सागर में न्हाएं,
तुम युगप्रधान यों कहलाएं।।
करुणा में सबसे आगे हो,
हर दिल जोड़े वो धागे हो।
स्व-पर प्रकाश को अपनाए,
तुम युगप्रधान यों कहलाएं।।
व्यवहार समन्वय सहयायी,
सबके विकास हित वरदायी।
जन मंगलपथ को अपनाए,
तुम युगप्रधान यों कहलाएं।।