युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

ओ मेरे भगवन्!
पुण्य पुंज की दिव्य छटा से मन हरसाए रे,
गणी की गरिमा गाए रे।।

तेरी चोंच चुगा भी तेरा, ये पंछी भी तेरा रे।
तेरापंथ सरताज चरण में, मोद मनाए रे।।

कोरे कागद-सा जीवन है, जो चाहो लिख देना रे।
कलाकार के सक्षमकर ही, भाग्य सजाए रे।।

क्यों पूजंू अनदेखे प्रभु को, तुझ आनन ही सुहाए रे।
ध्यान लगाऊं जब भी तेरा, चित्त रम जाए रे।।

निर्मल निर्झर प्रभु का जीवन, पावनता मन भाए रे।
नेमासुत स्वर्णिम युग नित इतिहास रचाए रे।।

षष्टिपूर्ति का शुभ अवसर, जन-मन को सरसाए रे।
‘युगप्रधान’ युग विजय वरो, जय घोष लुभाए रे।।

तर्ज: पनजी! मूंढ़ै बोल