युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
सन्तता की शान हो तुम
सत्य की पहचान हो तुम
शांति आभा में विलक्षण
हृद-तंत्री की तान हो तुम।।
इन्द्रिय-प्रतिसंलीन हो तुम
सहजानंद तल्लीन हो तुम
मुस्कानों से बहते निर्झर
अपने में ही लीन हो तुम।।
ज्ञान के अक्षय कोष हो तुम
निर्विकल्प परितोष हो तुम
प्रपन्चना के पंचम युग में
समता के जयघोष हो तुम।।
कर्मयोग के रूप हो तुम
ध्यान योग स्वरूप हो तुम
महाप्रज्ञ के सक्षम पटधर
महावीर के दूत हो तुम।।