युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युगपुरुष तुम्हें प्रणाम, युगप्रधान तुम्हे प्रणाम
अनुकंपा की चेतना से मानवता का मान बढ़ा,
प्रोन्नत साधुत्व से संस्कृति का सम्मान बढ़ा,
प्रलंब पादविहार से संघ-गौरव शिखर चढ़ा
सर्वाधिक दीक्षोत्सव से तुमने नव इतिहास गढ़ा।।
आर्हत वाणी से शाश्वत-संबोध दिया,
नैतिक मूल्यों से चारित्रिक प्रतिबोध दिया
सद्भावना संप्रसार से मैत्री का सिंहनाद दिया,
भारत मां के तिलक ललाम, युगप्रधान।।
ठोस रचनात्मक कार्यों से बने युग निर्माता,
नशामुक्ति अभियान से बने भाग्य विधाता,
गूढ़ रहस्यों को पहचानकर बने अनुसंधाता,
भारतीय संस्कृति साहित्य के हो तुम व्याख्याता।।
तव गौरवगाथा गूंजे अविराम।।