युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान अभिषेक दिवस पर श्रद्धा सुमन सजाएं।
ज्योतिचरण श्री महाश्रमणजी विजय ध्वजा फहराए।।

युगद्रष्टा युगस्रष्टा गुरुवर युग नब्ज पहचानी।
जन जीवन परिवर्तन खातिर अहिंसा यात्रा ठानी।
त्रिआयामी संकल्पों से घर-घर अलख जगाएं।।

तुम ही मंदिर तुम ही मस्जिद तुम ही प्रभुवर गिरजाघर।
वीर बुद्ध तुम पैगम्बर हो तुम घट-घट के हो शिवशंकर।
अध्यात्म जगत को राह दिखाकर, युगप्रधान कहलाए।।

शासनमाता के श्रीमुख से, युगप्रधान पद पाया है।
सरदारशहर में उत्सव का यह स्वर्णिम अवसर आया है।
रहो निरामय! बनो चिरायु! यही भावना भाते हैं।।