युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

परम यशस्वी अरु तेजस्वी, गणनायक है शासन के।

परम भक्त प्रभु महावीर के, प्रज्ञा पट्टधर महाप्रज्ञ के।
देश-विदेशों की यात्रा कर आए मायड़ भूमि में।
अभिषेक दिवस के शुभ अवसर पर, आज बिठाएं पलकों में।।

उपशमधारी, श्रमसहकारी, जन-जन का उद्वेग हरे।
वरदहस्त शिष्यों पर धरते, स्नेह से अभिसिक्त करे।
उपकृत है यह सृष्टि सारी, सुकृत सत् संदेश वरे।
युगप्रधान महाश्रमण मनस्वी, तव चरणों में शीश धरे।।

इस धरा से उस गगन तक, तेरी कहानी गीत गाएं।
शासना तेरी युगों तक रोशनी अलौकिक जगाएं।
छू रहा आकाश भू यह ज्योति के गुणगान गाएं।
ज्योति के गुणगान गाकर, पद्म चरणों में चढ़ाएं।।

षष्ठिपूर्ति का पावन अवसर, भू पर अब सुरतरु लहराएं।
जन्मोत्सव की अप्रतिम घड़िया, तीर्थ चतुष्टय मोद मनाएं।
पट्टोत्सव की अविरल बेला, सुरगण मिल सब तुम्हें बधाएं।
अनुपम आभा निरख-निरख कर सुधी जन अपने भाग्य सराएं।।