युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युगप्रधान उस पुण्यात्मा के श्रीचरणों में नमन हमारा।।
जिसकी दिव्य दृष्टि से मिलती हिमगिरि की उज्जवल ऊंचाई।
गरल पानकर जिसने शान्तिसुधा की शिव सरिता सरसाई।
ऋतुराज स्वयं जिसके जीवन से पाता पल-पल हरियाली।
जिसकी मृदु मुस्कानों से छा जाती है जग में खुशहाली।
दीनबन्धु जो कृपासिन्धु जो दुखियों का सबल सहारा।
युगप्रधान उस पुण्यात्मा के श्रीचरणों में नमन हमारा।।
जन-जन की कल्याण कामना से रहता गतिमान सदा जो।
उठे हए दोनों हाथों से देता है वरदान सदा जो।
पहनाता जो युगचिंतन को शाश्वत-मूल्यों का आभूषण।
चुन-चुनकर मानव जीवन के दूर कर रहा है जो दूषण।
मानव मन की हर उलझन को सुलझाकर बांटे उजियारा।
युगप्रधान उस पुण्यात्मा के श्रीचरणों में नमन हमारा।।