युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
दशों दिशाएं रचे ऋचाएं तव अभिनंदन में।
जय-जय ज्योतिचरण स्वर गूंजे हर धड़कन में।।
तेजस्वी आचार्यों से गण कालजयी
महातपस्वी महाश्रमण प्रभु आत्मजयी
शासन माता की शैली थी मनहारी
गणप्रधान से युगप्रधान की तैयारी।
शान्तिदूत, नेमासपूत, विश्रुत जिनशासन में।। जय-जय...।।
युगप्रधान की जो सोचें हम परिभाषा
महाश्रमण जीवन उसकी सुन्दर भाषा
आंधी से तूफानों से तुम नहीं डरे
अन्धेरी राहों में नव आलोक भरे।
धरती, अम्बर, तरुवर, सखर ज्यों हित साधन में।।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई जो आए
महाश्रमण में प्रभु की सूरत वो पाए
मुस्काती नजरों से वर पीयूष झरे
ना जाने कितने जन्मों की पीर हरे।