युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

प्रभुवर! तेरी जीवन गाथा ज्यों गंगा का निर्मल पानी।
कौन बता पाएगा बोलो अतिशय श्रम की अकथ कहानी।।

एकनिष्ठ हो निशदिन करते अर्हतवाणी का आराधन,
सदा सामने रखकर उसको होता हर गतिविधि का संचालन,
शिव सुख वरणी आपद हरणी वाणी है यह जग कल्याणी।।

मितभाषी हो मृदुसंभाषी वचनसिद्धि वरदायी है,
सत्य साधना से आप्लावित रवि सम प्रकटी पुण्याई है,
अनाग्रही चिंतन की गरिमा कहीं न कोई खींचातानी है।।

भरा हुआ सद्गुण रत्नों से जीवन पारावार विशाल,
तुम जैसे गणमाली पाकर सचमुच हम तो हुए निहाल,
महाप्राण जय-विजय पताका धरती नभ में है फहरानी।