युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
संघ सुमेरु के चरणों में संघ चतुष्टय मोद मनाएं।
युगप्रधान अभिषेक दिवस पर, वर्धापन कर हर्ष मनाएं।।
निर्मल आभा सुधा सन्निधि, सहज बनें शिव सुख दातार,
करुणा से आप्लावित वाणी, जनहित में बहती रसधार,
नव उन्मेषों से आप्लावित, संस्कारों के दीप जलाएं।।
पांव-पांव चलकर प्रभुवर ने, कितने प्रांतों को परसा है,
नैतिकता का पाठ पढ़ाकर, कितनों का मानस बदला है,
जग को तुमसे है आशाएं, अमित शांति-संदेश सुनाएं।।
धन्य धरा सरदारशहर की, अवसर आया सुंदरतम,
शासनमाता भी हर्षित है, देख नजारा भू पर अनुपम,
यशभेरी चिंहुदिशि में गंुजित, सृष्टि का कण-कण सरसाए।।
संघ प्रभाकर! गुण रत्नाकर! तव पदचिन्हों पर चल पाएं,
हर इंगित आराधन करने, मन वीणा नव गान सुनाएं,
तुम आराध्य तुम्हीं आराधन, तेरा वर्तन हम कर पाएं।।
बोधिप्रदाता शरणप्रदाता, तुम ही हो जीवन आधार,
आश्वासित जीवन का हरपल, पाना है अब भव का पार,
वरदहस्त पा महाश्रमण का, प्रतिपल अपना भाग्य सराएं।।