युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
आंधी तूफा न डिगा सका तुमको
धरती भी डोल गयी देखकर तेरे प्रण को
झुक गए नभ में देव-विमान
वंदन स्वीकार करो हे युगप्रधान! ।।
युग का ताप-संताप मिटा कर
अहिंसा में जन-मानस का विश्वास जगाकर
जग को सिखाया करना अहिंसा का सम्मान
वंदन स्वीकार करो हे युगप्रधान! ।।