युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर

प्रश्न उठा है भीतर में इक, क्यों कहलाए तुम युगप्रधान।

देखा प्रभु का जीवन दर्शन, मिल गया सुन्दर समाधान।।

महाप्रज्ञ के सक्षम पटधर, अनुकम्पा अवतार महान।
अभयप्रदाता शिवसुखदाता, मैत्री करुणा रत्न निधान।
प्रभुवाणी की अलख जगाते, सिखलाते जीने का ज्ञान।
इसीलिए हे महामसीहा! कहलाए तुम युगप्रधान।।

शासन नायक युग को तुमने दिए अनूठे है अवदान।
कल्याण बहुश्रुत और समीक्षा परिषद का पाया वरदान।
सुमंगल साधना, सामायिक का चला संघ में नव अभियान।
इसीलिए हे महामसीहा! कहलाए तुम युगप्रधान।।

मंगलमयी अहिंसा यात्रा आश्वस्त हुआ सकल जहान।
त्रि-आयामी सूत्र तुम्हारे जनता करती गंगा स्नान।
विष पीकर अमृत बांट रहे हैं, करते हैं सबका सम्मान।
इसीलिए हे महामसीहा! कहलाए तुम युगप्रधान।।

चंचल चित्त को कर प्रशांत हम दूर करें सारे व्यवधान।
मन उपवन को हरियल करती, शांतिदूत की मृदु मुस्कान।
पलकों में रूप सजे तेरा, धड़कन में तेरा अभिधान।
इसीलिए हे महामसीहा! कहलाए तुम युगप्रधान।।