युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
जन्मोत्सव की मंगल बेला, गीत सुनाती दशों दिशाएं।
तव चरणों की सन्निधि पाकर, मन की कली-कली विकसाएं।।
दिनकर सम तेजस्वी तुम हो, तपः तेज नित बढ़ता जाए।
नहीं देखते भूख-प्यास तुम, हर स्थिति में रहते सरसाए।
ऐसा राज बताओ गुरुवर! हम भी तुम जैसे बन जाएं।।
हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई चरणों में सब भेंट चढ़ाए।
तीन देश तेईस राज्य तव श्रम की गौरव गाथा गाए।
प्रवर अहिंसा यात्रा अनुपम नित नूतन इतिहास रचाएं।।
आज जरुरत जग को तेरी पुण्य प्रेरणा तुमसे पाएं।
नशामुक्ति नैतिकता सह सद्भाव सुमन पग-पग महकाएं।
राम बुद्ध महावीर तुम्हीं हो, पाकर तुमको हम हरसाएं।।
शासनमाता स्वर्गलोक से देख दृश्य यह मोद मनाए।
पंचामृत उत्सव वरदायी पाकर जन्मभूमि विरुदाए।
युगों-युगों तक मिले शासना, युगप्रधान युग तुम्हें बधाए।।
युगप्रधान युगबोध प्रदाता शान्तिदूत बन भू पर आए।
कोरोना आतंक भयावह अभय शांति का मंत्र सुनाए।
सकल समस्याओं का भगवन् समाधान जग तुमसे पाएं।।