युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युग की धारा को मोड़ सके वह युगप्रधान कहलाता है।
आग्रह की कारा तोड़ सके वह युगप्रधान कटलाता है।।
संयम का बिगुल बजाता है
तप की सौरभ फैलाता है
असंयम का घट फोड़ सके,
वह युग प्रधान कहलाता है।।
मत, सम्प्रदाय का मोह नहीं
अपनेपन का व्यामोह नहीं
जो भ्रान्त धारणा तोड़ सके
वह युगप्रधान कहलाता है।।
पतितों को पार लगाता है
वात्सल्य सुधा बरसाता है
जो टूटे दिल को जोड़ सके
वह युगप्रधान कहलाता है।।
प्रभु पथ पर प्राण बिछाता है
पर हित श्रम धार बहाता है
जन हित-तन हित को छोड़ सके
वह युगप्रधान कहलाता है।।
युग-युग तेरा युग आभारी
मौलिकता की रक्षा भारी
जो सारभूत निचोड़ सके
वह युगप्रधान कहलाता है।।