युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युगप्रधान हे युगपुरुष युग धारा को तुमने मोड़ा।
सद्भावों के दिव्य सूत्र से जन-जन को तुमने है जोड़ा।।
सहज शान्त खिलता गुलाब सा चेहरा लगता सबको प्यारा
जय-जय ज्योतिचरण का गूंजे धरती अम्बर में जयकारा
महाशक्ति के महास्रोत तुम, दर्शन से मिलती नव ऊर्जा
आस्था के अनुपम आलय हो, भक्ति से करते सब अर्चा
साम्यवाद के सद् चिन्तन से, सम्प्रदाय का घेरा तोड़ा।।
युग नायक तुम युग चिन्तक हो, श्रमण संघ के श्रेष्ठ सारथी
वीतराग सी अमल साधना गौरव गाए सकल भारती
प्रलम्ब अंहिसा यात्रा का गुरुवर ने नव इतिहास बनाया
जो भी आया चरण-शरण में उसका बेड़ा पार लगाया
मन मोहिनी मूरत के दर्शन पाने आता मानव दौड़ा।।
करुणा का लहराता दरिया शान्त कषाय की प्रखर साधना
वचन सम्पदा अद्भुत प्रभु की वत्सलतामय कुशल शासना
तेजस्वी आभामण्डल से होती निःसृत निर्मल ज्योति
पाकर प्रभु की पावन सन्निधि बने सीप भी उज्ज्वल मोती
युग-युग जीओ सकल संघ के करे कामना हे शिरमोड़।।