युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
हे शासन शेखर! शुभ श्रेयस्कर तव जीवन मनभाया।
युगप्रधान अलंकरण उत्सव उत्साह उमंग लहराया।।
भैक्षव शासन के गणमाली तुमसे उजली भोर
शशधर की सुषमा देती है अभिनव दौर
तीर्थंकर सम गुरुवर को पाकर नाच रहा मन मोर
हे दिव्य दिवाकर! दिव्य पुरुष दर्शन से जन-जन हरसाया।।
युुगद्रष्टा समदर्शी गुरुवर अनुपम अतिशयधारी
युगचेता संस्कृति संगायक मूरत है मनहारी
जन जीवन के पुण्य पयोधर जुड़ी तुमसे इकतारी
हे ज्योतिर्धर! अनुपम ज्योति से मम जीवन महकाया।।
तेरे पदचिन्हो बढ़ने का संकल्प हम लेते
श्रद्धा का शतदल हम भेंट तुम्हें देते
हे सर्वज्ञ! प्रज्ञ अन्तःप्रज्ञा तुम्हीं जगाते
हे गणनायक! तेरी छत्र छांव में संयम मेरा सरसाया।।