युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
युगप्रधान अवसर आया गण में नया
पांच तत्त्वों से, पांच समवाय से, पांच ज्ञान से करते वर्धापना
पृथ्वी सम तुम हो धृतिमान, पानी सम तुम हो गुणवान
वायु सम हो गतिमान, अग्नि सम तुम हो ऊर्जावान
अंबर-सा विस्तार, चिंतन है उदार, सतियों के ये विचार।।
नियति ने ली अंगड़ाई, पौरूष की हो पुरवाई,
पुण्ययोग की परछाई, नब्ज काल की छू पाई,
दर्पण-सा स्वभाव, पदार्थों से अलगाव, समवाय के हैं भाव।।
अतिविशिष्ट तुममें मतिज्ञान, अध्ययन अध्यापन श्रुतज्ञान,
पाट विराजे अवधिज्ञान, मन को पढ़ते चौथ ज्ञान,
केवलज्ञान मिले, अंतर्ध्यान खिले, तव अरमान फले।।
युगों-युगों तक राज करें, संघ संपदा खूब भरें,
नए-नए इतिहास गढ़ें, योगक्षेम सतियों का करें,
गुरुवर का उपकार, भावों का इजहार, सेना है तैयार।।