युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की षष्टिपूर्ति के अवसर पर
साधना के ओ सुमेरु मुझे वर वरदान दो।
साधना तेरी करूं मैं सिद्धि का सोपान दो।।
तुम्हीं मेरे मार्गदर्शक मार्ग भी तुम ही प्रभो।
तुम्हीं गति तुम ही प्रगति हो तुम ही हो मंजिल विभो।
अनुगमन तेरा करूं पदचिन्ह की पहचान दो।।
साध्य मेरे नाथ तुम ही तुम्हीं मेरी साधना।
तुम्हीं हो आराध्य मेरे हो तुम्हीं आराधना।
चल सकूं मैं साथ हरपल वह प्रवर उड़ान दो।।
तुम्हीं मेरी नाव नाविक तुम्हीं तारणहार हो।
तुम्ही हो संसार मेरे मुक्तिपथ दातार हो।
मोक्ष मेरा है यही बस तुम हृदय में स्थान दो।।