नवम साध्वीप्रमुखाश्री के मनोनयन पर उद्गार
प्रबल भाग्योदय से तुमने, पाया भैक्षव गण गुलजार।
आज बधाएँ दशों दिशाएँ, खुशियाँ छाई अपरंपार।।
गुरु तुलसी के करकमलों से, तुमको संयम रत्न मिला है।
उस विराट् व्यक्तित्व शरण में, जीवन उपवन खूब खिला है।
प्रभुवर से पाया था तुमने, देखो कैसा स्नेह दुलार।।
महाप्रज्ञ ने अनगढ़ पत्थर पर प्रतिमा का रूप उकेरा।
उन विनम्र जो भी सिखलाया, सीखा आया नया सवेरा।
उस प्रज्ञा की प्रज्ञा से आलोकित है सारा संसार।।
युग प्रधान महाश्रमण प्रवन ने, रचा अनूठा नव इतिहास।
गौरवशाली प्रमुखा पद का, कर सृजन भर दिया विश्वास।
साध्वीगण में लाए प्रभुवर, देखो कैसी नई बहार।।
शासनमाता की सन्निधि, पाई थी तुमने आठों याम।
अमृतमय वात्सल्य मिला था, भूल सके ना कभी तमाम।
शासनमाता के सपनों को, करना तुमको अब साकार।।