अर्हम्

अर्हम्

आज दिशाएँ परम प्रफुल्लित
गीत मस्ती में गाती हैं।
पंचम स्वर में कोयलिया भी मधु संगीत सुनाती है।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी वर्धापना।
संघ चतुष्टय सह गणशेखर प्रमुदितमना।।

गुरु तुलसी करकमलों से समण दीक्षा---
संघ प्रभावक देश-विदेश यात्रा
पूरा इक युग बीता, ऊगा संयम सविता
गुरु तुलसी, महाप्रज्ञ का दिल जीता
मुख्य नियोजिका पद पर प्रतिष्ठित हुए---
महाप्रज्ञ चरणों की उपासना मिली
ज्ञान, ध्यान, साधना की त्रिवेणी अमल
समता, जागरूकता से जीवन निर्मल
मुबारक हो चयन दिन सदा के लिए।।

आज स्वर्णिम सूर्योदय की आभा निखरी---
खुशियों के वंदनवार से महफिलसजी
दृष्टि अमियपगी, तकदीर जगी
साध्वी विश्रुतविभाजी पर हुई मरजी---
साध्वीप्रमुखा बने शासन जयवंता है---
वरो पग-पग विजय, दिल के अरमान हैं
झगमगा रही भावों की फूलझड़ियाँ
प्रभो! संघ को कराया अमृतपान है।।

लय: सलामे इश्क---