अर्हम्
युगप्रधान गुरुदेव की, कृपा हुई महान।
योग्य समझकर आपको किया प्रमुखा पद प्रदान।।
गुरुदृष्टि दूर दर्शिता पूर्ण है, सब भावों के ज्ञाता।
देते शिष्य वर्ग को, दिव्य ज्ञान प्रदाता।।
अहो भाग्य था आपका, साध्वीवृंद को हर्ष।
संभाल करो सबकी सतत, ना रहे कोई विमर्ष।।
समय-समय पर सर्वदा, गुरुवर का रखिए ध्यान।
स्वास्थ्य और गुरु इंगित का, पल-पल करिए ज्ञान।।
पावन चरण सरोज हो, अभिवंदन शत बार।
श्रद्धा सुमनों का करूँ, भक्ति भरा उपहार।।
जागरूक श्रमशीलता, विश्रुत विभा में व्याप्त।
सेवा संघ संघपति की करो, याद रहे परिव्याप्त।।
प्रमुदित नभ प्रमुदित धरा, है व्यक्तित्व अलभ्य।
साध्वीवृंद को नाज है, पा प्रमुखा पद भव्य।।