हे युगप्रधान करुणानिधान!
हे युगप्रधान करुणानिधान!
वर्धापना के क्षणों में चाहती हूं वर्धापित करना
पर किस उपमा से करूं वर्धापित तुमको
जो तुम पर सटीक उतरे।।
है अनुपमेय व्यक्तित्व के धनी क्या तुम सूर्य हो?
नहीं-नहीं तुम सूर्य नहीं हो क्योंकि
तुम्हारे में सूर्य जैसी तेजस्विता होते हुए भी दूसरों
को शोषण करने के भाव नहीं है।।
हे युगनायक! शांतिदूत क्या तुम चांद हो?
नहीं-नहीं तुम चांद नहीं हो क्योंकि
तुम्हारे में चांद जैसी शीतलता होते हुए
भी कालिमा का धब्बा नहीं है।।
हे युगद्रष्टा! युगस्रष्टा! क्या तुम हिमालय हो?
नहीं-नहीं तुम हिमालय भी नहीं हो क्योंकि
तुम्हारे में हिमालय-सी ऊंचाई होते हुए भी तुम्हारे में
पाषाण जैसा हृदय नहीं है।।
हे आचार कुशल बहुश्रुत मेधावी
फिर तुम क्या हो?
तुम इन सारी उपमाओं से परे हो
क्योंकि तुम एक महामानव धर्म-धुरंधर हो
इस संसार में तुम झुलसते प्राणियों को राह दिखाकर उससे
उबारने वाले हो।
इसलिए तुम केवल तुम हो, महाश्रमण हो।।