आचार्यश्री महाश्रमण जी के षष्टीपूर्ति के अवसर पर

आचार्यश्री महाश्रमण जी के षष्टीपूर्ति के अवसर पर


महाश्रमण की श्रमनिष्ठा ने तेरापंथ को शिखर चढ़ाया

गुण-अभिमंडित गरिमामय यह युगप्रधान का पद मनभाया।।

सहज-सरल है जीवन शैली, आकर्षित सबको कर देती।
मनमोहक मुस्काती मुद्रा, हर मन की पीड़ा हर लेती।
श्रम की अकथ कहानी सुनकर, जन-जन का मानस चकराया।।

परिमित भाषी, मृदु संभाषी, वाणी में है पूर्ण सजगता।
अनाग्रही चिंतन की स्फुरणा, तार्किक कौशल ज्ञान गहनता।
प्रश्नोत्तर की शैली सुनकर, विद्वत्जन ने शीश नमाया।।

अनुकम्पा के हो तुम आकर, कितनों का उद्धार किया है।
चरणों में जो हुआ समर्पित, करुणामृत का पान किया है।
प्रायोगिक उद्बोधन विभु का, नव पीढ़ी ने भी अपनाया।।

वत्सलतामय अनुशासन से, शिष्यों को सरसब्ज बनाते।
देकर पुण्य प्रेरणा पल-पल, हर प्रमाद से हमें बचाते।
स्वर्णिम अवसर गुरु सन्निधि में, भाग्योदय से मैंने पाया।।