भय के कारण व्यक्ति ईमानदारी और सच्चाई से दूर हो सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण
खारड़ा, 26 मई, 2022
महान परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी भीषण गर्मी में 16 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर खारड़ा ग्राम के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। मुख्य प्रवचन में आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आर्ष वाणी में कहा गया है-जो जिन तीर्थंकर होते हैं, केवलज्ञानी होते हैं। क्षीण मोह वीतराग हो जाते हैं, वे भय से मुक्त होते हैं। आठ कर्म जैन दर्शन में बतलाए गए हैं। उनमें एक कर्म है-मोहनीय कर्म, जिसको आठों कर्मों में राजा कहा गया है। मोहनीय कर्म का बड़ा परिवार है। इसकी कुल 28 प्रकृतियाँ हैं। उनमें एक प्रकृति है-भय की प्रकृति। अभय हो जाना बहुत बड़ी बात हो जाती है। अभय यानी न तो डरना, न दूसरे को डराना। डरना कमजोरी है, तो डराना भी एक तरह का पाप हो सकता है।
अभय में भी सात्त्विकता हो। हमारा अभय अहिंसापूर्ण है। भय के कारण आदमी हिंसा भी कर सकता है। भय के कारण आदमी झूठ भी बोल सकता है। भगवान महावीर का जीव अपने पिछले भव में त्रिपृष्ठ नाम का वासुदेव भी बना था। उनके उस समय में एक प्रतिवासुदेव था-अश्वग्रिह। उसको मारकर त्रिपृष्ठ वासुदेव बन सत्ता में आए थे। अश्वग्रिह के मौत के प्रसंग को समझाया कि किस तरह आदमी भय के कारण हिंसा और झूठ बोल देता है। तात्कालिक लाभ के कारण आदमी झूठ की शरण भी ले लेता है। गृहस्थ प्रयास रखे कि कभी झूठ का सहारा न लेना पड़े। दूसरे पर झूठा आरोप लगाना, खुद की आत्मा पर पाप लगाना हो जाता है। सच्चाई से परेशानियाँ आ सकती हैं, पर सच्चाई परास्त नहीं होती। सच्चाई में शक्ति होती है, झूठ के पैर नहीं होते हैं। सच्चाई बोलने वाले का दिमाग साफ रहता है। झूठ बोलने वाले को तो कितने ताने-बाने बुनने पड़ते हैं।
झूठ का तो रास्ता ही गलत और तनाव भरा है। ईमानदारी का रास्ता बढ़िया है। भय के कारण आदमी ईमानदारी और सच्चाई से दूर हो सकता है। प्रेक्षाध्यान में भी अभय की अनुप्रेक्षा कराई जाती है। धर्म और अध्यात्म की साधना में एक तत्त्व है-अभय। भगवान महावीर ने कितने अभय को प्राप्त कर लिया था। किस प्रकार वे उपसर्गों में निर्भय रहे थे। आदमी अभ्यास करे, अभ्यास करते-करते विकास हो सकता है। पुरुषार्थ भी हो। किसी प्राणी को डराने का प्रयास न करें। चाहे छोटे जीव हो या बड़े जीव। सावधानी रखें। हमारे भीतर भय का भाव पैदा हो जाता है, पर डरे नहीं, शांति रखें। डर लगना हमारी कमजोरी है। डर का उपाय है-नवकार मंत्र का जाप करें। हम अभय की साधना करें, न डरना, न डराना और अभय में भी सात्त्विकता को बनाए रखना। ज्ञानशाला लूणकरणसर ने नौ तत्त्वों पर अपनी प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि जिस व्यक्ति में श्रद्धा होती है, वह अपने कार्य में सफल हो सकता है। पूज्यप्रवर ने ज्ञानार्थियों से भक्तामर के श्लोकों को पूछा। ज्ञानार्थियों ने अच्छी प्रस्तुति दी। पूज्यप्रवर ने गुरुधारणा करवाई।