धरती पर तीन रत्न-पानी, अन्न और सुभाषित: आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ भवन, गंगाशहर, 15 जून, 2022
परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी का अपनी धवल सेना के साथ तेरापंथ भवन, गंगाशहर प्रवास का द्वितीय दिवस। आज प्रातः वृहद् मंगलपाठ के समय भी हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाएँ पूज्यप्रवर की सन्निधि में उपस्थित थे। दो दिन से मौसम भी अनुकूल हो रहा है। नंदनवन तेरापंथ के गणमाली आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी जीवन चलाने के लिए रोटी-पानी और हवा ये तीनों प्रथम कोटि की आवश्यकताएँ हैं। इन तीनों में भी हवा सबसे ज्यादा आवश्यक है।
कई लोग तिविहार संथारा करते हैं, उसमें भोजन तो बंद है, पर पानी लिया जाता है। चौविहार संथारा बड़ा मुश्किल है, उसे सोचकर करना, कराना चाहिए। कहा गया है कि धरती पर तीन रत्न हैंµपानी, अन्न और सुभाषित। शास्त्रों की अच्छी वाणी कितना आध्यात्मिक संपोषण दे सकती है। आदमी की अच्छी वाणी कितना संबल दे सकती है। जो पत्थर के टुकड़ों को रत्न कहते हैं, वो तो मूढ़ लोग हैं। पानी का अपना महत्त्व है, यह एक दृष्टांत से समझाया कि समय पर दो गिलास पानी का बहुत मूल्य चुकाना पड़ सकता है। कई बार पानी की किल्लत या जल संरक्षण की बात आती है।
भूख लगेगी तो रोटी काम आएगी। हीरे-पन्ने काम नहीं आएँगे। इसलिए अन्न को रत्न कहा गया है। वाणी थोड़ी अच्छी बोल देते हैं, तो वह भी सुभाषित रत्न हो जाता है। वाणी से कितना अंतर आ जाता है, यह भी एक प्रसंग से समझाया। उपहार का भी अपना महत्त्व होता है, पर वाणी सुभाषित हो। पदार्थ हमारे काम आते हैं, पर पदार्थों में मोह-आसक्ति नहीं करना यह साधना का तत्त्व है। गृहस्थ परिवार का पालन-पोषण करते हैं, पर अंतर्दिल में अनासक्ति रहे। मोह ज्यादा न करें। अनासक्ति अध्यात्म की साधना का सूत्र है। उपासक-उपासिकाएँ बैठे हैं। उपासक तो एक तरह से आगे बढ़े हुए जानकार होते हैं। घर में रहते हुए भी कमल की तरह अनासक्त-निर्मल रह सकते हैं। कई उपासक तो बहुत समय देते हैं, सेवा देते हैं। कितनी यात्राएँ करते हैं, थोड़ी अनासक्ति आई होगी तभी सेवा देते हैं। उपासक श्रेणी में ज्ञान का, साधना का विकास, संयम का विकास होना भी चाहिए। उपासक श्रेणी बहुत उपयोगी श्रेणी है। कार्यकारी श्रेणी है, इस श्रेणी का भी खूब अच्छा विकास हो, शक्ति बढ़े, संख्या बढ़े, प्रसार हो, अच्छा है।
अनासक्ति एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, अध्यात्म की साधना में। हम साधु-साध्वी, समणी का जीवन तो अनासक्तिमय होना ही चाहिए। घर-परिवार, परिग्रह को छोड़ देना कितना बड़ा त्याग है। शास्त्रकार ने उदाहरण दिया है, दो मिट्टी के गोलों का-एक आद्र दूसरा सूखा। आद्र गोले की मिट्टी दिवार के चिपक गई और सूखे गोले की मिट्टी लगी पर झड़ गई। चिपकी नहीं। आदमी सूखे मिट्टी के गोले की तरह रहे। आसक्ति होने से सघन कर्म-बंध हो सकता है। अनासक्त अवस्था में विशेष कर्म-बंध नहीं हो सकता। हमें अपने जीवन में अनासक्ति की साधना का प्रयास रहना चाहिए। गंगाशहर में प्रवास हो रहा है। गंगाशहर के दिवंगत एवं वर्तमान में उपस्थित चारित्रात्माओं की पूज्यप्रवर ने स्मृति की। गंगाशहर का हमारे धर्मसंघ में अच्छा स्थान है। अनेक चारित्रात्माएँ गंगाशहर से हैं।
साध्वीवर्याजी ने कहा कि परिवर्तन शाश्वत है, वह दो रूपों में होता हैµएक सहज और दूसरा पुरुषार्थ द्वारा। प्रश्न है क्या मनुष्य अपने स्वभाव को बदल सकता है। उपदेश से स्वभाव को नहीं बदला जा सकता, यह नीति शास्त्र की मान्यता है। अध्यात्म शास्त्र का मानना है कि स्वभाव को बदला जा सकता है। अर्जुनमाली, अंगुलीमाल, बाल्मिकी आदि इसके उदाहरण हैं। आदमी में अपनी कमी को जानकर परिष्कार की भावना आती है। पूज्यप्रवर के उपदेश से लोगों का स्वभाव बदल रहा है। भीतर में परिवर्तन की बात हो तभी स्वभाव में परिवर्तन किया जा सकता है।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मुनि विमल विहारी जी, मुनि प्रबोध कुमार जी, साध्वी दीपमाला जी, साध्वी कंचनबाला जी, साध्वी शुक्लप्रभाजी, साध्वी पुण्यप्रभाजी ने अपने भाव गीत, कविता व वक्तव्य से अभिव्यक्त किए।
मुमुक्षु समता, महिला मंडल अध्यक्षा ममता रांका, कन्या मंडल, तेयुप अध्यक्ष विजेंद्र छाजेड़, तेरापंथ किशोर मंडल, तेरापंथ प्रचेता व तत्त्व प्रचेता ग्रुप, डागलिया बंधु, अर्चना, रंजना, मंजु, पुष्पा चोपड़ा, मनोज प्रियंका छाजेड़, राजेंद्र सेठिया (उपासक), संयम, नैतिक आंचलिया, सुमन सेठिया, कोमल एकता पुगलिया, विजय लक्ष्मी सेठिया, जयश्री बोथरा, प्रवीण मालू ने अपनी भावना परम पावन के स्वागत-अभिवंदना में अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि जो व्यक्ति सत्य को जान लेता है, वह समझ लेता है।