अपने आराध्य, सिद्धांत एवं यथार्थ के प्रति हो आंतरिक भक्ति: आचार्यश्री महाश्रमण
लखासर, 22 जून, 2022
तीर्थंकर तुल्य आचार्यश्री महाश्रमण जी 16 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर लखासर स्थित राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे। मुख्य प्रवचन में जीवन नैया के कर्णधार आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि साधुओं के प्रतिक्रमण में पाँच पाटियाँ हैं। पाँचवीं पाटी में चौबीस तीर्थंकरों को वंदन किया है। लोगस्स की पाटी में भी एक-एक तीर्थंकर का नाम लेकर चौबीस तीर्थंकरों को वंदन किया गया है।
लोगस्स और पाँचवीं पाटी में तीर्थंकर और निर्गं्रथ प्रवचन के प्रति भक्ति मुखरित हुई है। नमस्कार महामंत्र में भी भक्ति है। अपने आराध्य के प्रति अपने मन में कितनी आंतरिक भक्ति है, यह खास बात हो। बाहरी भक्ति का भी महत्त्व हो सकता है। हमारे तो पंच परमेष्ठी आराध्य हैं, हमारे मन में उनके प्रति भक्ति हो एवं सिद्धांतों और आदर्शों के प्रति भी भक्ति हो। यथार्थ, व्रतों, नियमों के प्रति भक्ति हो। ‘प्राणों की परवाह नहीं है, प्रण को अटल निभाएँगे’ इस गीत में भी भक्ति है। साधु ने प्रण लिया है कि साधुपन लिया है, उसे अंतिम समय तक निभाऊँगा।
गृहस्थ भी श्रावक के जो नियम लिए हैं, उसे निभाने का प्रयास करें। हमारी प्रण आराध्य के प्रति भी भक्ति हो। गुरु साक्षात है, उनके प्रति भी भक्ति हो। ध्यान करने या कोई भावना भाने से ज्यादा गुरु की आज्ञा का पालन करो। गुरु आज्ञा के बिना कोई काम नहीं करना चाहिए। गुरु की आज्ञा को मत लोपो। इससे हम कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। आज लखासर आना हुआ है। मुनि मोतीजी लखासर के डागा परिवार से हुए हैं। नामी संत थे। जयाचार्य के काल में हुए हैं।
परमपूज्य के स्वागत में लखासर निवासी, कटक प्रवासी सोहनलाल दुगड़, भैरवलाल दुगड़, दुगड़ परिवार की बहनों ने गीत, लखासर के सरपंच गौवर्धन प्रसाद खिलेरी, विद्यालय प्रधानाचार्य राजीव, मोहनलाल सेठिया, मोहनलाल सिंघी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।