नव मनोनीत साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी के प्रति हृदयोद्गार
साध्वी प्राजल प्रभा
जैन वाङ्मय का सुन्दर सूक्त ‘एस वीरे पसंसिए जेण णिविज्जति आदाणाए’ वही वीर साधक प्रशंसा के योग्य है, जो अपनी साधना में उद्विग्न नहीं होता। श्रद्धेया साध्वीप्रमुखाश्रीजी का जीवन हर पल, हर क्षण साधना की सुवास से सुवासित रहता है। यदि मै यूं कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आपका व्यक्तित्व अध्यात्म का उत्कर्ष है। तेरापंथ में साध्वी प्रमुखाओं की यशस्वी परम्परा में आपश्री को पाकर हम धन्यता का अनुभव कर रहे हैं। आपकी आचारकुशलता, संयम-निष्ठा, निश्छल-व्यवहारिकता, श्रम-निष्ठा आदि अनेक विरल विशेषताएं आपके समुज्ज्वल जीवन में चार चांद लगाती रहे, ऐसी शुभाशंसा करते हैं। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा साध्वीप्रमुखा मनोनयन का वह अद्भुत एवं अपूर्व दृश्य परोक्ष रूप में भी आंखों को असीम सुख देने वाला था। इस पवित्र अवसर पर हम यही मंगलकामना करते हैं कि आपश्री की कुशल अनुशासना में हम समाधिस्थ रहें एवं चित्तसमाधिपूर्वक साधना में अहर्निश आगे बढ़ते रहें। हार्दिक अभिवन्दना-अभिवन्दना- अभिवन्दना...