नव मनोनीत साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी के प्रति हृदयोद्गार
साध्वी मोहनां ‘श्रीडूंगरगढ़’
15 मई 2022 के पुण्य प्रभात में जैसे ही आचार्यश्री महाश्रमणजी ने साध्वीप्रमुखा पद रिक्तता की पूर्ति की घोषणा की, चतुर्विध धर्मसंघ और विशेषतः तेरापंथ का साध्वी समाज उल्लसित और आशान्वित हो उठा। नव मनोनीत नौंवी साध्वी प्रमुखा का नाम सुनते ही ऐसा लगा समवसरण का वातावरण खिल उठा। आचार्यप्रवर के निर्णय का स्वागत और सम्मान करने के लिए जन मानस समुत्सुक हो उठा। पूज्यप्रवर ने अपनी दो कृतियों के साथ इस तीसरी कृति को जो वात्सल्य और अनुकम्पा बरसाई, जो आश्वासन प्रदान किया, उस दृश्य को देखकर किसका हृदय गद्गद् नहीं हुआ होगा।
जैसे बीज अपनी अस्मिता को मिटाता है तभी धरती में जड़ें जमाता है अन्यथा ऊंचाई और विस्तार कहां? बूंद सागर में समाविष्ट होकर ही सागर का रूप धारण कर सकती है। साध्वी प्रमुखा पद को गौरवान्वित करने वाला विश्रुतविभा नाम भी संघ और संघपति के प्रति सर्वात्मना समर्पण, अगाध श्रद्धा, निर्मल संयम, प्रबल पुरूषार्थ, सतत साधना, जगरूकता, तप-जप और सहिष्णुता की निष्पत्ति है। पूज्यप्रवर के विश्वास को अपनी श्रमनिष्ठा से बहुगुणित करती रहें। संघ में सदा उजला प्रभात रहे। सदा बसंत बहार रहे। इसी मंगलकामना के साथ।