अर्हम्
समणी मुकुल प्रज्ञा
नंदी सूत्र में तीन प्रकार की परिषद बताई गई है। उनमें पहली है जाणिया परिषद। यह परिषद मिथ्या तर्क-वितर्क को दूर करने वाली हंस की भाँति उत्तम होती है। जो क्षीर नीर विवेक से उत्तम क्षीर को ग्रहण कर लेती है और नीर को अलग कर लेती है। आपश्री की उन्नत यात्रा का एकमात्र कारण है। हंस की भाँति सम्यक् दृष्टिकोण। आप सदैव अपने गुरु की प्रतिछाया बनकर रही। उनसे जो भी आपने पाया उसे क्षीर की भाँति ग्रहण कर लिया। कहीं एक लाइन पढ़ी थी कि जो सदैव महापुरुषों के समीप बैठता है, उसका जीवन भी उच्च बन जाता है, आज आप जिस पद को सुशोभित कर रहे हों, यह उसी का ही प्रतिफल है। आपकी स्थिर-प्रज्ञता, मध्यस्थता, तटस्थता, गंभीरता और मित्तभाषिता बेजोड़ है। जब भी आप छोटे समणीजी को समय दिलाती तो एक ही बात कहती हमारा चिंतन पोजिटिव हो हम सदैव शुभ भावों में रहें। हमारी सहजशक्ति का विकास हो। कोई हमें कुछ भी कहे हम उसका प्रतिकार करने की अपेक्षा ये सोचें शब्द तो पुद्गल हैं, जिसका स्वभाव है बदलना हम पुद्गलों को न रखकर अपने मूल स्वभाव में रमण करें, यही साधक का लक्षण है। अंत में आपके मंगल भविष्य की मंगलकामना। शुभेच्छा।