अर्हम्
अर्हम्
समणी विनीतप्रज्ञा, समणी जगतप्रज्ञा
वर्धापन मंगल बेला आई है मनभाई।
साध्वीप्रमुखाश्री आज बधाई, देते प्रमुखाश्री आज बधाई।।
पाई है तुमने ज्ञान गहराई, कला नेतृत्व की सबको लुभाई।
लगता है व्यवहार सुहाना, मुद्रा मोहक व्यक्तित्व लुभाना।
विनय, विवेक, विद्या से बगिया सरसाई।। साध्वी---
संयम, संघ गुरु निष्ठा निराली, तप-जप आराधना से आतमा उजाली।
धीर गंभीर साध्वीप्रमुखा हमारी, प्रतिभा विलक्षण देखी तुम्हारी।
निर्मल भावों में रहकर अंतर ज्योत जलाई।। साध्वी---
सहज सरल देखी अलबेली, सुंदर लेखन सुंदर प्रवचनशैली।
पास में तेरे है श्रुत का खजाना, कोमल दिल लगता मनभाना।
पाओ तुम साधना में सागर-सी गहराई।। साध्वी---
दृढ़ संकल्पी हो स्वाध्यायशीला, पुरुषार्थी जीवनशैली सौम्य सुशीला।
रहे अनामय गात तुम्हारा, यही है अंतर भाव हमारा।
गुरुवर की महर नजर से पाई है ऊँचाई।। साध्वी---
तुलसी चरणन में पाया संयम पावन।
महाप्रज्ञ सन्निधि में श्रुत अवगाहन।
महाश्रमण शासना में विजय वरो तुम।
शासन माँ का रूप धरो तुम।।
करना है साध्वी-समणी गण संभाल स्वाई।।
साध्वीप्रमुखाश्री आज बधाई।।
लय: दुनिया बनाने वाले---