अर्हम्
अर्हम्
समणी सत्यप्रज्ञा
मंगलमय हो हर पल तेरा मंगलमय हो राहें।
मंगलमय है गुरु का साया, आगे बढ़ते जाएँ।
हर चाहत चरण तले।।
गुरु ने चादर बगसायी साध्वीप्रमुखा वरदायी।
दायित्व डोर जो थामी, सक्षम हो सदा सवायी।
गुरु हैं नाविक, खेवनहारे, थामे पतवार चले।।
तुम क्षीर समंदर जैसी, बाहर अंदर इक जैसी।
श्रद्धामय सांस सुनहरी, अनुपम वत्सलता बरसी।
तुलसी युग का नव तीर्थ तुम्हीं, यश महाप्रज्ञ उजले।।
महाश्रमण शासनावासी, दुनिया सारी हरषायी।
साध्वीप्रमुखा नवमासन, गण-बगिया स्मित सरसाई।
हो हंस मनीषा, पारमिता प्रज्ञा के पथ भले।।
हो स्वस्थ निरामय काया, पायी शासन की छाया।
तप जप समदर गहराया, ज्ञानोत्सव ध्वज फहराया।
निज पर निज शासन-अनुशासन, नय विनयी सपन फले।।
लय: आ चल के---