जाते हम बलिहारी
साध्वी पंकजश्री
शासनश्री कैलाशवती जी, जाते हम बलिहारी।
धन्य-धन्य सतिवर तुमने, अनशन कर नैया तारी।
जय-जय शासनश्री जी की।।
कालू युग में जन्मे सतिवर, तुलसी से संयम पाया।
महाप्रज्ञ की कृपा भारी, अग्रणी पद सरसाया।
महाश्रमण के श्रीमुख से, पा शासनश्री सुखकारी।।
भैक्षव शासन, नंदनवन की, पायी शीतल छाया।
श्रद्धा सेवा और समर्पण से, जीवन महकाया।
ज्ञान ध्यान और तप से, जोड़ी आत्मा से एकतारी।।
ऋजुता मृदुता सहनशीलता, की खिलती फूलवारी।
असाध्य बीमारी में भी, कभी न हिम्मत हारी।
पापभीरूता सहज सरलता, थी अद्भुत तुम्हारी।।
माँ सी ममता मिली आपसे, कैसे भूल मैं पाऊँ।
चालीस बरस रही साथ में, अब मन कैसे मैं समझाऊँ।
याद सतावै पल-पल तेरी, ममतामय मूतर प्यारी।।
गुरु दृष्टि आराधन कर, क्षण-क्षण को सफल बनाएँ।
जन-जन में उत्साह जगाकर, सोये क्षेत्र जगाएँ।
एक प्रहर का अनशन कर, इच्छा मृत्यु है स्वीकारी।।
जो भी आता पास तुम्हारे, वो अपना बन जाता।
शांति पाठ, मांगलिक सुन, मन के इंद्र सभी को मिटाता।
सबकी श्रद्धा आस्था के तुम, बने सदा उपकारी।।
नई मंुबई वाशी में तुमने, नव इतिहास रचाया।
तेरापंथ समाज ने, मृत्यु महोत्सव अवसर पाया।
सतिवर दो, आशीष पंज को, खिले संयम की क्यारी।।