समता की अलख जगाई
साध्वी ललिताश्री
समता की अलख जगाई।
शासनश्री कैलाशवती की महिमा चहुँदिशि छाई।।
गुरु तुलसी से दीक्षा लेकर जीवन को चमकाया।
भैक्षव शासन नंदनवन में, तुमने नाम कमाया।
महाश्रमण के श्रीमुख से, शासनश्री की पद्वी पाई।।
मिलन सारिता अद्भुत तेरी वाणी में मधुरता।
संघ संघपति पूर्ण समर्पित गुरु प्रति श्रद्धा निष्ठा।
शुद्ध संयम की करी साधना, आराधक पद के पाई।।
27 वर्ष तक मिली सन्निधि, वत्सलता खूब है पाई।
जीवन जीने की शिक्षा देकर, अमृत घूँट पिलाई।
तेरे अनगिन उपकारों को मैं तो भूल न पाई।।
गुरु आज्ञा से पंकज श्री जी ने संथारा पचखाया।
महाव्रतों की कर आलोयणा, खमतखामणा कराया।
साध्वी ललिताजी को दे दो, दर्शन की तुम सांई।।
लय: संयममय जीवन हो---