विकास रूपी फल को प्राप्त करने के लिए अनुशासन रूपी मूल का दृढ़ होना जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विकास रूपी फल को प्राप्त करने के लिए अनुशासन रूपी मूल का दृढ़ होना जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण

छापर की पावन धरा पर 29वें विकास महोत्सव का भव्य आयोजन

डायमंड की नगरी में होगा तेरापंथ के कोहिनूर आचार्यश्री महाश्रमणजी का सन् 2024 का चातुर्मास

ताल छापर, 5 सितंबर, 2022
भाद्रव शुक्ला नवमी, गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी का आचार्य पद आरोहण पट्टोत्सव का दिन। जिसे आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने विकास महोत्सव के रूप में स्थापित कर दिया था। आज परम पावन की सन्निधि में 29वाँ विकास महोत्सव का आयोजन हो रहा है। गुरुदेव तुलसी विकास के पुरोधा थे। उन्होंने संघ को नई-नई ऊँचाइयाँ प्रदान की। तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आगम में वर्धमान होने की बात बताई है। आदमी को अपने जीवन में आगे बढ़ने का, विकास करने का प्रयास करना चाहिए। विकास प्रिय लगता है, अच्छा होता है। परंतु यह जागरूकता रखना आवश्यक है कि हमारी विकास की दिशा सही है या गलत है। विकास की गति थोड़ी मंद भले हो पर दिशा सही रहनी चाहिए। जो दिशा निर्धारित है, उस दिशा में कदम बढ़े। अच्छी उपलब्धि हो सकती है। गलत दिशा में विकास अवांछनीय है।
भाद्रव शुक्ला नवमी, परमपूज्य गुरुदेव श्री तुलसी का आचार्य पदारोहण दिवस रहा है। आज के दिन गंगापुर में औपचारिक रूप में जैन श्वेतांबर तेरापंथ के नवमें आचार्य की गद्दी को संभाला था। आचार्य पद पर आरोहण किया था। जैन विश्व भारती का विकास हुआ और विश्वविद्यालय संस्थान सामने आ गया। आचार्य तुलसी का कितना चिंतन-परिश्रम लगा है। कुछ उसी का परिणाम लगता है। जैन विश्व भारती संस्थान में भारतीय विद्याओं को पढ़ाने वाला, ज्ञान देने वाला संस्थान है। आचार्य तुलसी जब 22 वर्ष के युवा थे तब हमारे धर्मसंघ के सम्राट, आचार्य, अनुशास्ता बन गए थे। करीब-करीब 61 वर्षों तक धर्मसंघ के आचार्य और गणाधिपति के रूप में सेवा करने का उच्च स्थान पर रहने का अवसर प्राप्त हुआ था।
आचार्य तुलसी ने तेरापंथ धर्मसंघ का विकास कराने का, करने का प्रयास किया था। आगे बढ़ते-बढ़ते मानो उन्होंने इतना विकास कर लिया कि आचार्य पद को भी छोड़ दिया। युवाचार्य महाप्रज्ञ जी को आचार्य महाप्रज्ञ बना दिया। इस विसर्जन की पृष्ठभूमि पर यह विकास महोत्सव कुछ आधारित है। जो आज भी उनके जीवन के आधार पर मनाया जा रहा है। विकास और अनुशासन दो चीजें हैं। विकास एक फल है, अनुशासन रूट है, मूल है। वृक्ष की जड़ भी है और फल भी है। अगर जड़ है और फल नहीं तो कुछ उसकी
उपयोगिता है। फल नहीं लगे तो कमी है। संगठन ऐसा होना चाहिए, जिसका मूल भी ठीक हो और वह संघ विकास करता रहे, सेवा देता रहे। ऊँचा और आगे बढ़ता रहे। ऐसा संगठन महत्त्वपूर्ण संगठन होता है। हमारे धर्मसंघ में अतीत में दस आचार्य हो गए हैं। सबने अपने ढंग से संघ की सेवा की। आचार्य तुलसी ने तो कितने लंबे काल तक संघ सेवा की। अणुव्रत जैसे अभियान को उन्होंने प्रचारित किया। जनता में मानवीयता, संयम, नैतिकता, अहिंसा जैसे तत्त्वों को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया। आज ये जो विकास महोत्सव मनाया जा रहा है, वह मुख्यतया आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की देन है और आज तक विकास महोत्सव की परंपरा बनी आ
रही है। हमारे धर्मसंघ में चारित्रात्माएँ, समणियाँ, मुमुक्षु बाईया, श्रावक- श्राविकाएँ व कितनी संस्थाएँ हैं। ये समाज के अंग हैं। हमारे धर्मसंघ का हर अंग मजबूत बना रहे और ज्यादा पुष्ट हो आगे बढ़ता रहे। विकास करता रहे। ज्ञान का भी विकास हो। जहाँ लगे कि यहाँ विकास हो सकता है, विकास करने का प्रयास करना चाहिए। छोटी-छोटी प्रतिभाएँ भाषाई विकास करती रहें। विकास दिवस हमारे लिए प्रेरणादायी बने। तेरापंथ विकास परिषद भी विकास के साथ आगे बढ़ता रहे। चारित्रात्माएँ व श्रावक-श्राविकाएँ लंबी तपस्याएँ करते हैं। हमारे धर्मसंघ में भी विकास होता रहे। यह काम्य है। विकास महोत्सव के गीत का सुमधुर संगान किया। विकास पत्र का वाचन किया।

विकास के लिए जीवन और एक्शन जरूरी: साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा

साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने इस संदर्भ में कहा कि परमपूज्य आचार्यप्रवर ने एकदम अन-एक्सेप्टेड घोषणा की है। इंदौर-रतलाम के लोग भी सज-धजकर आए थे। आचार्यप्रवर को लगता है कि जहाँ संघ की ज्यादा से ज्यादा प्रभावना हो, वहाँ मुझे जाना चाहिए। आचार्यप्रवर का 2024 का वर्ष दीक्षा पर्याय का पचासवाँ वर्ष है। श्रद्धा गुजराती लोगों के रग-रग में रमी है। वहाँ ज्यादा-से-ज्यादा मुमुक्षु तैयार हों, ऐसा प्रयास करना चाहिए।
मैं तेरापंथ धर्मसंघ को विकासशील धर्मसंघ के रूप में देख रही हूँ। आचार्य भिक्षु ने विकास की नींव रखी। जयाचार्य ने विकास का धरातल प्रदान करवाया। कालूगणी ने विकास के बीजों का वपन किया और आचार्य तुलसी ने विकास के नए-नए òोत खोले। जिसके पास विजन और एक्शन होता है, वह विकास कर सकता है। वह तेरापंथ के आचार्यों के पास है। गुरुदेवश्री तुलसी ने विकास के नए-नए मार्ग प्रशस्त किए। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि इस दुनिया में कठिन काम है, अपनी पहचान बनाना। गुरु पथ दर्शक होते हैं, जो सन्मार्ग पर ले जाते हैं। सुगुरु के सुयोग से भीतर की क्षमताएँ जाग जाती हैं। पूज्य कालूगणी में एक चुंबकीय आकर्षण था, जो बालक तुलसी को मिला। आचार्य तुलसी ने कितने-कितने व्यक्तियों का निर्माण किया।
साध्वीवृंद व समणीवृंद द्वारा समूह गीत की प्रस्तुति हुई। तेरापंथ विकास परिषद के संयोजक मांगीलाल सेठिया, सदस्य पदमचंद पटावरी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। शहरी विकास मंत्री व जैविभा के चांसलर अर्जुनराम मेघवाल ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। महिला मंडल छापर ने गीत की प्रस्तुति दी। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने नव तत्त्वों को समझाया।

आचार्यप्रवर ने चातुर्मास की घोषणा करते हुए फरमाया कि 2024 के चातुर्मास के लिए अनेक क्षेत्रों के प्रयास हो रहे हैं। बड़े-बड़े संघ रूप में आए हुए हैं। यह अच्छी बात है। संख्या में कम घर होते हुए भी चातुर्मास को पाने का प्रयास कर रहे हैं। मैंने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को देखते हुए 2024 का चातुर्मास सूरत में करने का चयन किया है। इसके साथ ही पूरा पांडाल जय-जय ज्योतिचरण, जय-जय महाश्रमण के जयकारों से गूँज उठा।