बारह व्रत कार्यशाला के आयोजन
कटक, ओडिशा।
मुनि जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में अभातेयुप के निर्देशन में व स्थानीय तेयुप द्वारा बारह व्रत कार्यशाला का आयोजन तेरापंथ भवन में हुआ। इस अवसर पर मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा कि जीवन की दो वृत्ति हैं-निवृत्ति और प्रवृत्ति। असंयम से निवृत्त होना और संयम में प्रवृत्त होना यही जीवन वृत्ति है। श्रावक का अर्थ है-एक जागृत आत्मा, जो व्रतों के द्वारा जीवन को उच्च कोटि का बना देता है। मुनिश्री ने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति व्रत प्रधान संस्कृति है। व्रत स्वीकार करने का तात्पर्य श्रावक अव्रत रूपी पाप से बच जाता है। वह अभय, सत्य की अच्छी साधना कर सकता है। व्रत का अर्थ है-छोटे-छोटे नियम। प्रत्येक व्यक्ति को अहिंसा आदि 12 व्रतों की साधना करनी चाहिए। व्रत गाड़ी में ब्रेक के समान हैं। अहिंसा व्रत जल है शेष सारे व्रत अहिंसा के पानी की सुरक्षा के लिए पाल के समान हैं। मुनिश्री ने सभी को बारह व्रत स्वीकार करने की प्रेरणा प्रदान की। कार्यशाला में अच्छी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।