अवबोध धर्म बोध
शील धर्म
प्रश्न 7 ः क्या पाँचों महाव्रतों का पालन युगपत् करना पड़ता है?
उत्तर ः पाँचों महाव्रतों को एक साथ ग्रहण करना पड़ता है, वैसे ही उनका पालन भी युगपत् रूप से करना पड़ता है। जो एक महाव्रत को भंग करता है वह सबको भंग करता है। आचार्य भिक्षु ने इस तत्त्व को निम्नोक्त उपनय से इस प्रकार समझाया हैµ
‘एक भिखारी को पाँच रोटी जितना आटा मिला। वह रोटी बनाने बैठा। उसने एक रोटी पकाकर चूल्हे के पीछे रख दी। दूसरी रोटी तवे पर सिक रही थी। तीसरी अंगारों पर थी। चौथी रोटी का आटा उसके हाथ में और पाँचवीं रोटी का आटा कठौती में था। एक कुत्ता आया और कठौती से आटे को उठा ले गया। भिखारी उसके पीछे दौड़ा। वह ठोकर खाकर गिर पड़ा। उसके हाथ में जो एक रोटी का आटा था, वह गिरकर धूल-धूसरित हो गया। वापस आया, इतने में चूल्हे के पीछे रखी रोटी बिल्ली ले गई। तवे की रोटी तवे पर ही जल गई। अंगारों पर रखी हुई रोटी जलकर खत्म हो गई। एक रोटी का आटा जाने से बाकी चार रोटियाँ भी चली गईं। कदाचित् एक रोटी के नष्ट होने पर अन्य रोटियाँ नष्ट न भी हों, पर यह सुनिश्चित है कि एक महाव्रत के भंग होने पर सभी महाव्रत भंग हो जाते हैं।’ यही तथ्य आगमों में भी वर्णित हैµ‘ब्रह्मचर्य आदि किसी एक महाव्रत के भंग होने पर भी महाप्रत भंग हो जाते हैं, पर्वत से गिरी हुई वस्तु की भाँति टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं।’
(क्रमशः)