शिक्षा है सत्यं-शिवं-सुंदरं का समन्वित रूप
बारीपदा, उड़ीसा।
मुनि जिनेश कुमार जी ने कॉलेज के छात्रों के मध्य दुगड़ निवास पर कहा कि व्यक्तित्व विकास के अनेक मूल्य निर्धारित किए गए हैं, उसमें एक महत्त्वपूर्ण मूल्य है-शिक्षा। शिक्षा जीवन का अनिवार्य अंग है। शिक्षा जीवन को संवारती है, सजाती है व विवेकसंपन्न बनाती है। शिक्षा जीवन का अभ्युद्य है, शिक्षा सत्यं शिवं सुंदरं का समन्वित रूप है। शिक्षा के साथ संस्कारों का जागरण जरूरी है। बिना संस्कार की शिक्षा जीवन के लिए भार है। शिक्षा का उद्देश्य हो सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास। सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास के चार आयाम हैं-शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक। जिस शिक्षा में चारों ही आयाम हों, वह शिक्षा सर्वांगीण कहलाती है।
वर्तमान में शारीरिक, बौद्धिक शिक्षा का विकास तो बहुत हो रहा है, लेकिन मानसिक व भावनात्मक शिक्षा का अभाव है। जिसके कारण अनुशासनहीनता बढ़ रही है। शारीरिक बौद्धिक प्रशिक्षण के साथ मानसिक भावनात्मक प्रशिक्षण जरूरी है। इसके विकास के लिए आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने जीवन विज्ञान का आयाम दिया है। मुनिश्री ने आगे कहा कि जीवन विज्ञान के प्रयोगों से बहुत बड़ा बदलाव आता है एवं एकाग्रता, स्मरण शक्ति, अनुशासन का भी विकास होता है। मुनिश्री ने अणुव्रत अहिंसा यात्रा की चर्चा करते हुए सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति के बारे में बताया। मुनिश्री ने जीवन विज्ञान के प्रयोग करवाए। मुनि कुणाल कुमार जी ने अणुव्रत गीत का संगान किया।