व्यक्ति संसार रूपी सागर में रहते हुए कमल की तरह निर्लिप्त रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्ति संसार रूपी सागर में रहते हुए कमल की तरह निर्लिप्त रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

पारलू, 31 दिसंबर, 2022
31 दिसंबर, वर्ष 2022 का अंतिम दिन। कल का सूर्य एक नए वर्ष को लेकर उदित होने वाला है। तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य प्रातः विहार कर पारलू पधारे। पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए परम पुनीत ने फरमाया कि हमारे जीवन में दो तत्त्व हैं-एक है आत्मा और दूसरा तत्त्व है-शरीर। आत्मा और शरीर के योग पर मानव जीवन आधारित होता है। शरीर अस्थायी तत्त्व है और आत्मा स्थायी तत्त्व है। दिखाई देने वाला स्थूल शरीर है, हर प्राणी एक दिन अवसान को प्राप्त हो जाता है, परंतु आत्मा कभी नहीं मरती। वह अछेद्य है। अदाध्य है, अकलेव्य, अशोष्य है। परमात्मा अशरीरी होते हैं, वे जीवन मुक्त हैं। मोक्ष को प्राप्त करने के लिए वीतराग बनना जरूरी है।
प्रगाढ़ राग-द्वेष और स्नेहपाश भयंकर है। साधु में तो वीतरागत्व की साधना होनी चाहिए। गृहस्थ भी इनसे बचें, इस पाश को काटें तो वह सुखी हो सकता है। नवकार मंत्र की आत्मा वीतरागता है। इसका जप करें और हमारे में वीतरागता का संचार होता रहे। आज रात्रि 12 बजे के बाद नया वर्ष लगने वाला है। एक वर्ष कभी प्रारंभ हुआ था आज वह अपनी संपन्नता की निकटता के पास है। इस वर्ष का आत्मावलोकन करें। पदार्थों व बाह्य चीजों के प्रति ज्यादा मोह दुखी बना सकता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि गृहस्थों को साधु संगति मिले तो ज्ञान मिल सकता है। जनोद्धार का कार्य कर सकते हैं। गुरुदेव तुलसी ने लंबी यात्राएँ कर जन प्रतिबोधन दिया था। गुरुदेवश्री तुलसी गरीब की झोंपड़ी से लेकर राष्ट्रपति भवन तक गए थे।
मन में समता रहे। संपत्ति साथ में नहीं जाने वाली है। ये सब मेरा नहीं है। एक आत्मा मेरी है, मैं आत्मा के कल्याण के लिए जागरूक रहूँ। रोज नाश्ते से पहले एक सामायिक सुबह-सुबह हो जाए। संसार में रहते हुए कमल की तरह निर्लिप्त रहें। तीव्र राग-द्वेष पाश है, इन्हें प्रशस्त करने का प्रयास करें। आज पारलू आए हैं। सिवांची-मालाणी का धर्मसंघ में सीर है। अनेक साधु-साध्वियाँ, समणियाँ धर्मसंघ में दीक्षित हैं। सब आध्यात्मिक-धार्मिक सेवा-साधना करती रहें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि हम स्वयं अध्ययन करते हैं, रहस्यों को भी समझने का प्रयास करते हैं, पर वो रहस्य नहीं समझ पाते जो गुरु की सन्निधि में उत्पन्न होते हैं। आचार्यप्रवर के सामने हमारा ज्ञान कुछ भी नहीं है। आचार्यप्रवर जब बोध देते हैं, तो हमारे भीतर एक नया प्रकाश जागृत होता है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मुनि विनम्र कुमार जी, साध्वी प्रबुद्धयशा जी एवं साध्वी काम्यप्रभा जी की ओर से अपनी जन्म धरा पर अपनी भावना अभिव्यक्त की गई। स्थानीय सभाध्यक्ष रमेश बागरेचा, हर्ष बागरेचा, पूर्व बालड़, भाविका चोपड़ा, वर्षा चोपड़ा ने अपनी भावना श्रीचरणों में अर्पित की। सभी के द्वारा समूह गीत की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।