अनुशासन से कहना, सहना और रहना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अनुशासन से कहना, सहना और रहना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

आसोतरा, 2 जनवरी, 2023
सिवांची-मालाणी क्षेत्र की यात्रा करते हुए करुणा के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर आसोतरा पधारे। आसोतरा में ब्रह्माजी का बड़ा धाम है। यह मंदिर पुष्कर के बाद ब्रह्म धाम पीठ से प्रसिद्ध है। इसके पीठाधीश श्री तुलसारामजी ने भी आचार्यप्रवर एवं धवल सेना का स्वागत किया। मंगल प्रवचन में पावन पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यप्रवर ने फरमाया कि हमारे जीवन में क्षमा का महत्त्व है। साधना-धर्माराधना की दृष्टि से, आत्मकल्याण की दृष्टि से देखें क्षमा धर्म एक कल्याणकारी अच्छा धर्म है।
आदमी की कमजोरी होती है कि वह सहन नहीं कर पाता। प्रतिकूल परिस्थिति आते ही आवेश आ सकता है। आदमी को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। परिवार में सहिष्णुता का भाव रखें। सहना चाहिए, पर उचित तरीके से कहना भी चाहिए। राम राज के भी दो अर्थ होते हैं-एक सब अनुशासित है, कोई भी कुछ कहने की जरूरत नहीं। सब सुख-शांति में है। दूसरे अर्थ में रामराज है कि कोई कहने वाला नहीं, कोई सुनने वाला नहीं। सब अपने अनुसार करने वाले हैं। कहना चाहिए, सहना चाहिए और शांति से रहना चाहिए। अनुशासन तो परिवार, समाज, संगठन सबके लिए अच्छा है। इनसे परिवार-समाज अच्छे रह सकते हैं। एक प्रसंग से समझाया कि जहाँ अनुशासन है, वहाँ सुख रह सकता है। एकता का महत्त्व है।
जहाँ सारे नेता बन जाएँ, सब अपने आपको बिना ज्ञान ही पंडित मानने लग जाएँ। वो राष्ट्र या संगठन विकास नहीं कर सकता। बिना कर्तव्य भावना और बिना अनुशासन के यह लोकतंत्र का देवता मृत्यु और विनाश को प्राप्त हो जाएगा। सब जगह अनुशासन चाहिए। स्वच्छंद न बनें। तुम मर्यादा का मान नहीं रखोगे, तो तुम्हारा मान कौन करेगा।
क्षमा धर्म है, उसमें सहन करने की शक्ति का होना आवश्यक है। अच्छा शिष्य नहीं बनने वाला अच्छा गुरु भी नहीं बन पाएगा। गुरु बनने की भूख न हो। अनुशासन से समाज स्वस्थ रह सकता है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि भारतीय परंपरा में दुर्लभ अनेक वस्तुओं को माना गया है। संत का मिलना और भगवान की कथा को दुर्लभ बताया गया है। चिंतामणी रत्न, कल्पवृक्ष, कामधेनू दुर्लभ है, तो मनुष्य जन्म श्रुत, श्रद्धा और संयम में पराक्रम दुर्लभ है। मुमुक्षुत्व और महापुरुषत्व भी दुर्लभ है। गुरु का दर्शन भी दुर्लभ है। प्यासा कुएँ के पास जाता है, पर आज तो कुआँ प्यासे के पास आया है। गुरु से नई दिशा प्राप्त हो जाती है।
ब्रह्म धाम पीठ के उत्तराधिकारी संत धानारामजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त करते हुए कहा कि भारत विश्व गुरु इसलिए है कि भारत में रहने वाले धर्म को जीते हैं। धर्म का उपदेश है कि जो तुम अपने लिए चाहते नहीं हो वो दूसरों के प्रति भी मत चाहो। प्रेम है तो भगवान की अनुभूति है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में आसोतरा सरपंच दामोदरसिंह राजपुरोहित, तेरापंथ सभाध्यक्ष मोहनलाल डोसी, तेममं, शांतिलाल बागरेचा, आसोतरा ग्रामीण महिलाएँ, बागरेचा परिवार की महिलाएँ, पूर्व शिक्षाधिकारी पृथ्वीराज दबे ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। जसोल थाने की अधिकारी डिंपल कंवर ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।