शासनमाता के प्रति उद्गार
अर्हम
साध्वी कारुण्यप्रभा
शासन माँ का देवलोक सुन मुरझाया मन आज।
तुम जैसी महाश्रमणी पर दुनिया करोगी नाज।।
मुस्काता खिलता चेहरा लगता प्यारा,
आभामंडल शांतिप्रदायक मनहारा,
जिसने चरण सन्निधि पाई सर गए वांच्छित काज।।
तेरी वत्सलता पाकर हम फले-फूले,
शांति प्रदाय शीतलता पा खूब खिले,
हर क्षण मुस्काता तब चेहरा क्या है इसका राज।।
एक नजर तेरी हम पर जब टिक जाती,
मानो दिल की हर आशाएँ फल जातीं,
तेरी भोज भरी मिठी-मिठी लगती आवाज।।
एक बार जिसने पाई सन्निधि तेरी,
उसके दिल में बस गई माँ सूरत तेरी,
तेरी प्रवचन शैली लगती सचमुच बेअंदाज।।
लंबे-लंबे चलकर गुरु ने दर्शन दिए,
मन के सब अरमान प्रभु ने पूर्ण किए,
फाल्गुन शुक्ला चवदश को दिल्ली में अंतिम साँस।।
लय: बार-बार तोय क्या समझाऊ----