अर्हम
अर्हम
साध्वी शांतिप्रभा (राजलदेसर)
शासनमाता के उपकारों से उऋण हो न पाएँ,
दिल की पीड़ा किसे सुनाएँ,
ममतामयी महाश्रमणी की वत्सलता भूल ना पाए,
दिल की पीड़ा किसे सुनाएँ।
जब-जब याद किया हमने तुमने करुणा बरसाई,
गुरु तुलसी की कृति हो तुम,
हम सबको खूब है भाई,
तेरी मोहिनी मूरत को माँ
भूल नहीं हम पाएँ।
तीन-तीन आचार्यों का अद्भुत सान्निध्य मिला है,
आठवीं साध्वीप्रमुखा बनने का सौभाग्य मिला है,
तेरी ऋजुता से सिंचन पा हम मानस हरसाएँ।
प्रभु तुलसी ने निज हाथों से तुमको खूब सँवारा,
अनुपमेय व्यक्तित्व तुम्हारा लगता था मनहारा,
पौरुष की जीवंत निशानी तुमको भूल ना पाएँ।
कविता का संग्रह साँसों का तारा दिल को भाए,
मेरा जीवन मेरा दर्शन पढ़कर मन हरषाए,
तुलसी की अनगिन कृतियों का तेरा श्रम महकाए।
लंबे-लंबे चलकर प्रभु ने तुम को दर्शन दिराए,
शासनमाता महाश्रमणी का गुरुवर मान बढ़ाएँ,
भैक्षव शासन नंदनवन सा शासन सबको भाए।
लय: नैतिकता की----