महाव्रतधारी साधु के दर्शन से वैराग्य भाव जागृत हो सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

महाव्रतधारी साधु के दर्शन से वैराग्य भाव जागृत हो सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण

शाहीबाग-अहमदाबाद,25 मार्च, 2023
अर्हत् वाणी के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित पारिवारिक निर्देशित एवं म्. क्पहपजंस निर्देशिका का लोकार्पण एवं आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ विहार मंच द्वारा आचार्य तुलसी सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रतजी, मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई तथा अतिथि विशेष राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश एवं विश्वनाथ सचदेवा उपस्थित रहे। परमपूज्य ने पावन देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आगम में एक बात आती है कि राजा उद्यान में गया। बगीचा सुंदर था। वहाँ राजा ने एक शिकार को देखा, तीर से निशाना साधा और वह हिरण काल कलवित हो गया। राजा ने देखा एक साधु सामने ध्यानस्थ बैठा है। साधु तो अहिंसा, दया, क्षमा और समता मूर्ति होते हैं। ऐसे साधु का दर्शन कोई श्रद्धा से करे तो दर्शनकर्ता के पाप निरजीर्ण हो सकते हैं। जो तन से, मन से, वचन से किसी को दुःख नहीं देते, ऐसे अहिंसक महाव्रतधारी, साधु के दर्शन करने से पाप झड़ सकते हैं। वैराग्य भाव जागृत हो सकते हैं।
साधु के चेहरे से सरलता-ऋजुता टपक रही थी। राजा ने सोचा मैंने इस हिरण को मारा है, साधु इसका पता लगने से कुपित हो सकता है। साधु तो समता की प्रतिमूर्ति होते हैं। राजा भयभीत हो गया। उसने साधु से क्षमा माँगने की सोची। एक तो है, बलात् कार्य करना और एक है, समझाकर हृदय परिवर्तन करके उसको रास्ते पर लाना। साधु ने राजा को अभयदान का महत्त्व समझाया तो राजा भी समझ गया। साधु तो अभयदान-दाता होता है। अभयदान सबसे बड़ा दान होता है। हिंसा में आसक्त न बनें। निंदनीय कार्यों को छोड़ें। अभयदान वांछनीय हो। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि भारतीय दर्शन की दो धाराएँ आस्तिक और नास्तिक रही हैं। आस्तिक धारा में आत्मा, कर्म, ईश्वर को स्वीकार किया है, पर नास्तिक धारा इनमें विश्वास नहीं करती। जैन दर्शन तो हर जीव को ईश्वर बनने का अवसर दे रहा है। पर वह ईश्वर को कर्ता-धर्ता के रूप में स्वीकार नहीं करता। जैन दर्शन किसी भी वस्तु
की व्याख्या अनेक दृष्टिकोण और नय से करता है।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि हमें मानव जीवन मिला है। मानव जीवन को सफल बनाने के लिए समय का सदुपयोग करें। मानव जीवन की चार अवस्थाएँ बताई गई हैंµबाल्य, किशोर, युवा और बुढ़ापा। अहमदाबाद पारिवारिक निर्देशिका व ई-निर्देशिका का विमोचन पूज्यप्रवर की सन्निधि में किया गया। जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, अहमदाबाद के सभी पदाधिकारियों ने अहमदाबाद पारिवारिक निर्देशिका पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में उपहृत की। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि अहमदाबाद का तेरापंथ समाज बड़ा है। निर्देशिका संपर्क का अच्छा साधन है। आध्यात्मिक गतिविधियाँ श्रावक समाज में चलती रहें। सभी में अच्छे संस्कार रहें।
निर्देशिका के संयोजक धनपत मालू ने इसके बारे में पूरी जानकारी दी। ई-निर्देशिका की जानकारी उसके संयोजक नरेश सालेचा ने दी। विकास पितलिया ने आभार व्यक्त किया। पूर्व अध्यक्ष नानालाल कोठारी, अरविंद दुगड़, डॉ0 महावीर व दिनेश बुरड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। मैनाक भरसारिया ने 27 एवं आंगी नितिन खतंग ने 8 की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। 

आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ विकास मंच द्वारा आचार्य तुलसी सम्मान समारोह का आयोजन
आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ विकास मंच लगभग पिछले 15-16 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े लोगों का सम्मान करती आ रही है। वर्तमान में राजकुमार पुगलिया इसके संयोजक हैं। सम्मान समारोह में मनीष बरड़िया एवं दीक्षित सोनी को आचार्य तुलसी सम्मान से सम्मानित किया गया। सर्वप्रथम मुख्य अतिथि व विशेष अतिथियों का साहित्य से सम्मान किया गया। विश्वनाथ सचदेवा व हरिवंश ने इस सम्मान के संबंध में जानकारियाँ दी। तारा मेहनोत ने मंगलाचरण अणुव्रत गीत से किया। राजकुमार पुगलिया ने सम्मान व लेखकों की लेखनी के बारे में जानकारी दी। आचार्यश्री तुलसी के अवदानों का गुणगान किया। दीक्षित सोनी को वर्ष 2021 के लिए आचार्य तुलसी सम्मान मुख्य अतिथि श्री आचार्य देवव्रत के करकमलों से प्रदान किया गया। दीक्षित ने पूज्यप्रवर से आशीर्वाद लिया। मनीष बरड़िया जिन्होंने अद्भुत डिजाइनों से धर्मसंघ व राष्ट्र की सेवा की है, को भी आचार्य तुलसी सम्मान से सम्मानित किया गया।
परम पावन ने आशीर्वचन फरमाया कि धर्मशास्त्र में मनुष्य जन्म को दुर्लभ बताया गया है, बहुत महत्त्वपूर्ण बताया गया है। वह आत्मा से परमात्मा तक की स्थिति को प्राप्त हो सकता है। मनुष्य अगर उत्पथ में चला जाए तो मनुष्य दुनिया का एक अघम प्राणी बनने की स्थिति में आ सकता है। भारत का सौभाग्य है कि यहाँ संत परंपरा लंबे काल से चली आ रही है। अनेक धर्म ग्रंथ और पंथ हैं। इसका लाभ जनता उठाए तो आध्यात्मिक उन्नयन की दिशा में आगे बढ़ सकती है। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत के नाम से एक आंदोलन चलाया। जो जन-जन के जीवन का कल्याण करने वाला है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान का अवदान दिया। अध्यात्म से मानसिक शांति और भीतरी सुख मिल सकता है। दोनों आचार्यों ने नैतिकता और आध्यात्मिकता के प्रचार का कार्य किया।
आज आचार्य तुलसी सम्मान से दीक्षित और मनीष को सम्मानित किया गया है। आदमी जीवन में अच्छा कार्य करता रहे। पत्रकारिता या कोई अन्य क्षेत्र हो, आदमी में प्रामाणिकता-नैतिकता के प्रति सम्मान रहे। निष्पक्षता-निर्भीकता रहे। यथार्थता और स्पष्टता रहे। गुजरात में खूब धार्मिकता रहे। नैतिक मूल्यों का विकास हो। अहिंसा-संयम की चेतना का विकास हो। गुजरात राज्य अध्यात्म की दृष्टि से भी विकास करता रहे, मंगलकामना। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने ‘श्रद्धा विनय समेत णमो अरहंताणं’ गीत का सुमधुर संगान किया। सभी लोगों द्वारा राष्ट्रगान का संगान किया गया। पूज्यप्रवर के मंगलपाठ से कार्यक्रम का समापन हुआ। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने पाँच पर्व तिथियों के बारे में समझाया।