आध्यात्मिक साधना का मूलाधार है आत्मवाद: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आध्यात्मिक साधना का मूलाधार है आत्मवाद: आचार्यश्री महाश्रमण

शाहीबाग-अमदाबाद, 26 मार्च, 2023
अणुव्रत यात्रा के प्रणेता एवं उनकी धवल सेना का अहमदाबाद का 18वाँ दिन एवं शाहीबाग प्रवास का अंतिम दिन। जैन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन दर्शन के अनेक सिद्धांत हैं। छः दर्शनों में समुच्चय भी एक ग्रंथ है। नास्तिक दर्शन की भी बात आई है। नास्तिक दर्शन पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करता। आस्तिक दर्शन की एक पहचान यह है कि वह पुनर्जन्म में विश्वास करता है, आत्मा के स्थायी तत्त्व को स्वीकार करता है। अध्यात्म की जितनी साधना है, उसका मूल आधार आत्मवाद है। यदि आत्मा शाश्वत नहीं है, पुनर्जन्म नहीं है तो फिर साधु बनने की सार्थकता नहीं, न ही तपस्या-आराधना की अपेक्षा है।
आत्मवाद है, तो पुनर्जन्मवाद है। पुनर्जन्म की बात अन्य दर्शनों में भी प्राप्त हो जाती है। जैसे आदमी पुराने वस्त्रों को छोड़ नए वस्त्र धारण कर लेता है, उसी प्रकार यह आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को धारण कर लेती है। पुनर्जन्म का मूल कारण है-कषाय, क्रोध, मान, माया और लोभ। कषाय पूर्ण रूप से क्षीण हो जाएँ तो मुक्ति तैयार है। पुनर्जन्म में अगर असंधिग्ता है तो भी तुम जीवन में अच्छा काम करो। कोई नुकसान नहीं होगा। अगर पुनर्जन्म है और अच्छे काम किए तो आगे भी अच्छा मिलने की आशा रखो। आस्तिक हो या नास्तिक जीवन में बुरे काम मत करो। हम तो आस्तिक बनकर जीवन जीएँ। नास्तिकवाद का कोई अच्छा जानकार है, तो मुझे आकर मिले। उसके साथ चर्चा कर नास्तिकवाद को समझने का प्रयास करें। मैं भी उसे अपनी बात बताऊँ।
प्रेक्षाध्यान पद्धति में पुनर्जन्म का प्रयोग भी चलता था। पुनर्जन्म को सींचन कषायों से मिलता है। हम कषायों से मुक्त रह सकें, हलके रह सकें तो हम पुनर्जन्म को सींचन नहीं दे सकेंगे। तो एक दिन पुनर्जन्म निष्प्राण हो सकता है, आत्मा को मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है। हमारा शाहीबाग का 11 दिवस का प्रवास आज पूर्ण हो रहा है। शाहीबाग की जनता में भी खूब धार्मिक जागरणा बनी रहे, यही मंगलकामना है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि व्यक्ति लक्ष्य बनाकर, लक्ष्य का निर्धारण कर, लक्ष्य तक पहुँचना चाहता है। पर कई बार आदमी अपने संकल्प तक नहीं पहुँच पाता, उसके तीन कारण बताए गए हैं-इंद्रियों और मन पर संयम न होना, परिषहों को नहीं जीत पाना और चित्त की चंचलता। हमारा संकल्प सुदृढ़ हो तो हम लक्ष्य की सिद्धि को प्राप्त कर सकते हैं।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि संघ व्यक्ति के लिए आधार होता है, संघ गति, प्रतिष्ठा और त्राण होता है। चतुर्विध संघ होता है। संघ में श्रावक विकास करता है। श्रावक श्रद्धाशील, विश्वस्त और प्रयोगधर्मा होता है। श्रावक धर्म को जानें, जीएँ और उसके आचरणों में आए। शिल्पा-भरत भंसाली एवं उनकी सुपुत्री नीता भंसाली ने पूज्यप्रवर से 27 की तपस्या मासखमण के प्रत्याख्यान लिए। मुनि सिद्धार्थ कुमार जी ने रविवार की गीतिका का सुमधुर संगान किया।
पूज्यप्रवर की अभ्यर्थना में जवेरीलाल संकलेचा, विमल बोरदिया, कांतिलाल चोरड़िया (सभाध्यक्ष), तेयुप मंत्री दिलीप भंसाली एवं जसराज बुरड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। चिकित्सा सेवा में सहयोगी डॉक्टरों का व्यवस्था समिति द्वारा सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि कालचक्र गतिमान है, काल किसी का दास नहीं है।