ज्ञानी संत का महाप्रयाण
बहुश्रुत परिषद् संयोजक मुनिश्री महेंद्र कुमारजी स्वामी का आज 6 अप्रैल को अपराह्न में महाप्रयाण हो गया। हमारे धर्मसंघ का एक विद्वद्वरेण्य व्यक्तित्व विदा हो गया। वे ‘आगम मनीषी’ अलंकरण से विभूषित थे और इस अलंकरण के अनुरूप उनका कर्तृत्व भी सामने आ रहा था। जैन आगम-भाष्य लेखन आदि कार्य में उनकी अच्छी भूमिका रही थी। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी द्वारा दीक्षित मुनिश्री महेंद्र कुमारजी स्वामी संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती आदि अनेक भाषाओं के वेत्ता थे।
‘प्रेक्षाप्राध्यापक’ के रूप में प्रतिष्ठापित मुनिश्री महेंद्र कुमार जी स्वामी की प्रेक्षाध्यान जगत को अनेक रूपों में सेवाएँ प्राप्त हुईं। योगक्षेम वर्ष की पृष्ठभूमि के निर्माण और प्रशिक्षण में भी उनकी अच्छी सेवा रही थी। जैन विश्व भारती और जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट, लाडनूं के विकास में मुनिश्री का अच्छा योगदान रहा था। अवधान विद्या में भी वे निपुण थे। उनकी ज्ञानात्मक श्रमनिष्ठा तथा शासन और शासनपति के प्रति भक्ति स्तुत्य थी। उनकी अपनी अध्यात्म साधना भी विशिष्ट प्रतीत हुई। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के वे कृपापात्र रहे थे।
मुनिश्री महेंद्र कुमारजी स्वामी के सहवर्ती मुनि अजित कुमारजी, मुनि जम्बूकुमारजी ‘मिंजूर’, मुनि अभिजीत कुमारजी, मुनि जागृतकुमारजी और मुनि सिद्धकुमारजी खूब मनोबल रखें, खूब चित्त समाधि में रहें। सहवर्ती संतों को मुनिश्री की सन्निधि, सेवा और उनसे शिक्षण प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ। पाँचों संत खूब धर्मसंघ की सेवा करते रहें और अपना विकास करते रहें। मुनिश्री महेंद्र कुमारजी स्वामी का मुंबई में लंबा प्रवास हुआ। मुंबई समाज को भी उनकी सेवा का अवसर मिला। मैं आध्यात्मिक मंगलकामना करता हूँ कि कालधर्म प्राप्त मुनिश्री की आत्मा शीघ्र मोक्षश्री का वरण करे।
दशरथ, गुजरात - आचार्य महाश्रमण