।। नमो जिनेभ्यः।।
बहुश्रुत परिषद संयोजक मुनि महेंद्र कुमारजी स्वामी के स्वर्गवास पर रचित श्लोक
।। नमो जिनेभ्यः।।
मुनि जागृत कुमार
।। महेन्द्रमुनिर्महान्।।
महेन्द्रकुमारजी स्वामी कौन थे?
पूतशतावधानी यो, वेदविदात्मरक्षकः।
मम संरक्षकोप्यासीत्, स महेन्द्रमुनिर्महान्।।1।।
जो पवित्र, शतावधानी, आगम के विशेषज्ञ, आत्मा की रक्षा करने वाले, मेरे संरक्षक थे, ऐसे मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी स्वामी महान हैं।।
प्रेक्षाप्राध्यापकश्चासीत्, यो निजात्मगवेषकः।
हि कोविदोऽल्पभोजी च, स महेन्द्रमुनिर्महान्।।2।।
जो प्रेक्षाप्राध्यापक, अपनी आत्मा की गवेषणा करने वाले, विद्वान, अनुभवी, अल्पभोजी थे, ऐसे मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी स्वामी महान हैं।।
स्वाक्रोशवधकश्चासीत्, बहुश्रुतो महर्द्धिकः।
क्ष्यति दुष्कर्मशाखा यः, स महेन्द्रमुनिर्महान्।।3।।
जो अपने आक्रोश का वध करते थे, बहुश्रुत थे, महर्द्धिक थे, बुरे कर्म की शाखाओं का छेदन करते हैं। ऐसे मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी स्वामी महान हैं।।
यश्च वंदनकं पूजां, सत्कारं नाम नैच्छत् हि।
सुनिष्ठावान् तपस्वी हि, स महेन्द्रमुनिर्महान्।।4।।
जो वंदन, पूजा, नाम, सत्कार की इच्छा नहीं करते, अच्छी निष्ठा वाले, तपस्वी थे, ऐसे मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी स्वामी महान हैं।
तुलसीगुरु हस्ताभ्यां, दीक्षां लुब्धश्च कोमलः।
धन्योऽष्टादशभाषज्ञः तस्मै हि मुनये नमः।।5।।
जिन्होंने आचार्य तुलसी गुरु के हाथों से दीक्षा को प्राप्त किया, जो कोमल, धन्य, अठारह भाषाओं के जानकार थे, ऐसे मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी स्वामी को मेरा नमस्कार।।