तेरापंथ धर्मसंघ के वरिष्ठ एवं विशिष्ट संत थे मुनि महेंद्र कुमारजी
मुनि महेंद्र कुमारजी के देवलोकगमन पर विशेष आलेख
बहुश्रुत परिषद के संयोजक मुनि महेंद्रकुमार जी स्वामी तेरापंथ धर्मसंघ के वरिष्ठ एवं विशिष्ट संत थे। वे प्रांजल प्रतिभा के धनी थे। अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, गुजराती आदि अनेक भाषाओं के विज्ञाता थे। अपनी क्वालिटी के वे इकलौते संत थे। धर्म की विज्ञान के साथ तुलना में उनका नजरिया अनुपम था, सटीक था। ज्ञानाराधना, श्रुताराधना में उनकी लगन अद्भुत थी। संघ एवं संघनायक के प्रति उनका समर्पण अनन्य था। युगप्रधान आचार्य त्रिपुटी के वे विशेष कृपापात्र एवं परम विश्वासपात्र थे। उनकी सैद्धांतिक एवं तात्त्विक अवधारणाएँ विलक्षण थी। वे आगम मनीषी थे, आगम महाग्रंथ भगवती सूत्र पर किया गया उनका विशाल स्तरीय कार्य युगों-युगों तक अमर रहेगा।
उनका आगम ज्ञान अगाध था। आगमµअनुसंधान में उनकी पैनी पकड़ थी। आगम ज्ञान की गहराइयों में उतरकर अनमोल दुर्लभ रत्नों को बटोरने में उन्होंने अपनी तीव्र मेधा का भरपूर उपयोग किया आपकी अध्यात्म साधना, संघ निष्ठा, गुरुनिष्ठा, श्रम निष्ठा बेजोड़ थी। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रेक्षाध्यान के अनेक शिविरों के कुशल संचालक रहे। संघ में अवधान विद्या के प्रसार में आपका श्रमदान अविस्मरणीय रहेगा। आचार्यों ने आपको प्रेक्षाध्यापक, आगम मनीषी, बहुश्रुत परिषद के संयोजक के रूप में नवाजा। संघ में बी0एस0सी0 डिग्री धारी ये प्रथम संत थे।
वे उदारचेता थे। ई0 सन् 1985 का मुनिश्री का पावस प्रवास अणुव्रत भवन, दिल्ली में था और हमारा सदर थाना रोड, दिल्ली सुराणा धर्मशाला में। प्रायः हर रविवारीय प्रवचन एवं अन्य विशेष आयोजनों में मुनिश्री हमें भी सहभागी बनने का मूल्यवान अवसर प्रदान करते। टी0वी0 चैनल पर होने वाले एक प्रभावी कार्यक्रमµ‘अपनी धरती अपने लोग’ प्रोग्राम का अवसर स्वयं न लेकर हमें प्रदान किया एवं उसका समुचित दिशा-दर्शन भी हमें दिया। जबकि कार्यक्रम की आयोजना में मुनिश्री का ही अपना श्रमदान था। हम आपके इस औदार्य भाव के प्रति गद्गद थे।
राष्ट्रपति भवन में महामहिम राष्ट्रपति ज्ञानी जेलसिंहजी से मुलाकात के समय हम साध्वियों को भी संभागी बनाया। मुझे भावाभिव्यक्ति का विशेष अवसर प्रदान किया। उस दौरान मैंने कहाµ‘जिस प्रकार सम्राट अशोक का राजकुमार महेंद्र एवं राजकुमारी संघमित्रा अहिंसा का संदेश लेकर लंका गए थे उसी प्रकार मुनि महेंद्रकुमारजी और मैं (साध्वी संघमित्रा) आचार्य तुलसी का अणुव्रत का संदेश लेकर भारत की राजधानी दिल्ली और आज राष्ट्रपति भवन, में आए हैं। मुझे विश्वास है मुनिश्री के प्रयास से आपके द्वारा अणुव्रत के रूप में यह नैतिक आवाज पूरे भारत में गुंजित होगी।
मुझे गौरव है मुनि महेंद्रकुमार जी भंसाली परिवार से हैं और मैं भी भंसाली परिवार से हूँ। आपके पिता का नाम प्रो0 जेठाभाई झंवेरी और मेरे पिताजी का नाम डॉ0 जेठमलजी भंसाली, किसी-न-किसी रूप में आपके साथ भाई-बहन का संबंध पाकर गर्व ही नहीं, गौरव की अनुभूति होती है। साध्वी शीलप्रभा जी ने मुनिश्री से अवधान का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वे कई बार इसका उल्लेख किया करती थी।
जैन विश्व भारती एवं जैन विश्व भारती संस्थान की विकास यात्रा में आपका सघन पुरुषार्थ एवं कर्तृत्व हमेशा अंकित रहेगा। भारत की राजधानी दिल्ली में आपने 18 पावस प्रवास किए और जनता को अपने लंबे प्रवास से लाभान्वित ही नहीं किया, बल्कि आपके वैदुष्यपूर्ण प्रवचनों की प्रबुद्ध जैन जैनेत्तर समाज में आज भी अनुगूंज है। ई0 सन् 1989 में योगक्षेम वर्ष के कार्यक्रमों की व्यवस्थित रूपरेखा तैयार, करने में आपकी अद्वितीय भूमिका रही है। प्रतिभाशाली संत के रूप में आपका नाम हमेशा स्मरणीय रहेगा।
महान तपस्वी एवं सेवाभावी मुनि अजितकुमारजी स्वामी ने लंबे समय तक छाया की तरह आपके साथ रहकर आपकी उत्कृष्ट सेवा का लाभ लिया है। अनेक अनुभवों को बटोरा है। मुनि प्रवर से प्राप्त अमूल्य निधि का संरक्षण ही नहीं संवर्धन भी हो। श्री जम्बूकुमारजी, अभिजीत कुमारजी, जागृत कुमार जी एवं सिद्धकुमार जी ने भी आपकी निकट सन्निधि में जीवन का बहुमुखी विकास किया। उनकी चित्त समाधि में सहयोगी रहे। उनसे प्राप्त संस्कारों का शतगुणित विकास हो। संघ महान है। श्रम के महादेवता, व्यक्तित्व निर्माण के महाशिल्पी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी के विशद् मार्गदर्शन में विद्वद्वरेण्य सौ-सौ मुनि महेंद्र तैयार हों एवं धर्मसंघ की प्रभावना में नए-नए अध्याय जुड़ते रहें। आध्यात्मिक विकास की मंगलकामना।