प्रो0 मुनि महेंद्र कुमारजी का देवलोकगमन
मुंबई।
आगम मनीषी बहुश्रुत परिषद संयोजक प्रो0 मुनि महेंद्र कुमार जी स्वामी का दिनांक 6 अप्रैल, 2023 को दोपहर 3ः23 पर गोयल भवन, आइरिन अपार्टमेंट, विले पार्ले में देवलोकमन हो गया।
आपका जन्म मृ0कृ0 6, संवत् 1994, 23 नवंबर, 1937 में मुंबई में हुआ। (मूल निवासी-कच्छ, भुज)। आपके पिता का नाम जेठालाल झवेरी एवं माता का नाम सूरजबहन झवेरी था।
आपने 20 साल की उम्र में मुंबई विश्वविद्यालय से बीएससी (ऑनर्स) में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के बाद का0कृ0 9, संवत् 2014, सन् 1957 में सुजानगढ़ में आचार्यश्री तुलसी के करकमलों से दीक्षा ग्रहण की।
अग्रगण्य: लाडनूं (सन् 1985)। आचार्यश्री तुलसी द्वारा।
- ‘मानद प्रोफेसर’ व ‘शोधमार्गदर्शक’ रूप में मनोनीत, 1993, श्रटठप् यूनिवर्सिटी द्वारा।
- ‘आगम मनीषी’, 2009, लाडनूं, आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा।
- ‘बहुश्रुत परिषद् के संयोजक’, 2020, हुबली, आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा।
अन्य उल्लेखनीय बिंदु: विज्ञान, मनोविज्ञान, पराविज्ञान, जैव-विज्ञान, भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शन के विद्वान्।
- जैन आगम, जैन दर्शन और प्रेक्षाध्यान की वैज्ञानिक व्याख्या के विशेषज्ञ।
- संस्कृत, प्राकृत, पाली, अंग्रेजी, जर्मन, हिंदी, गुजराती, राजस्थानी आदि अनेक भाषाओं के अधिकृत विद्वान्।
- शतावधानी।
- अणुव्रत आंदोलन, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान, अहिंसा-प्रशिक्षण जैसी अध्यात्म-मूलक प्रवृत्तियों में सक्रिय प्रचारक की भूमिका निभाई।
- अनेक राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में सहभागी रहे।
- आचार्यों के इंगितानुसार दिल्ली में सुदीर्घ विहार कर अकालीदल के नेता संत लोंगोपाल से भेंट की। उन्हें आमेट में विराजित पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के दर्शन हेतु प्रेरित किया, जिससे आगे चलकर पंजाब व भारत की एक बड़ी समस्या का हल हुआ।
- अग्नि-परीक्षा के रायपुर प्रसंग के समय मुनिश्री दिल्ली में विराजमान थे। उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से संपर्क साधने में मुनिश्री का भी योगदान रहा।
- जैन विश्व भारती के विकास के लिए आचार्यश्री तुलसी के निर्देशानुसार मुनिश्री ने लाडनूं में 18 चातुर्मास किए।
- योगक्षेम वर्ष के कैलेंडर निर्माण में अपनी सेवाएँ प्रदान की।
- उत्कर्ष एवं उत्थान के रूप में मुंबई चातुर्मास की आध्यात्मिक तैयारी कराई।
- आगम संपादन के महत्त्वपूर्ण कार्य से भी मुनिश्री लगातार जुड़े रहे। भगवती सूत्र के भाष्य लेखन में मात्र अंतिम दो शतक-40 और 41 शेष रहा था।
- तेरापंथ के आचार्यों की सन्निधि में आने वाले विशिष्ट व्यक्ति (यथा-मदर टेरेसा, ए0पी0जे अब्दुल कलाम इत्यादि) और आचार्यों के संवाद में अनुवादक की भूमिका निभाई।
- आपश्री ने प्रेक्षाध्यान पर कई पुस्तकों का संपादन किया है। अवधान विद्या में भी आप पारंगत थे।
- आपश्री द्वारा 15 से अधिक पुस्तकें लिखी गईं हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविरों के दौरान प्रेक्षाध्यान पर ऑडियो-विजुअल व्याख्यान भी आपने दिए।
मुनिश्री के भावी भव के उत्थान की आध्यात्मिक मंगलकामना।