अनासक्ति के साथ अहिंसा की चेतना पुष्ट हो: आचार्यश्री महाश्रमण

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अनासक्ति के साथ अहिंसा की चेतना पुष्ट हो: आचार्यश्री महाश्रमण

अंकलेश्वर, 15 अप्रैल, 2023
संयम के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः विहार कर भरूच से अंकलेश्वर पधारे। युवा मनीषी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जीवन को चलाने और टिकाने के लिए आदमी को पुरुषार्थ करना होता है। प्रवृत्ति करनी होती है। प्रश्न उठता है कि संसार में रहते हुए पाप कर्मों से कैसे हल्के रह सकें। एक सुंदर उपाय है, वह हैµअनासक्त चेतना का विकास। जैसे पानी में रहकर कमल निर्लिप्त रहता है, वैसे आदमी संसार में रहकर निर्लिप्त रहे। निर्लेपता की साधना पाप कर्म से बचाने में सफल हो सकती है। गीली मिट्टी और सूखी मिट्टी के गोले के प्रसंग द्वारा समझाया कि जो प्रवृत्ति आसक्ति से गीली होती है, तो पाप कर्म बंध विशेष हो सकता है।
दो मार्ग हैंµआसक्ति और अनासक्ति। गृहस्थ परिवार-समाज में रहकर भी अनासक्त भाव से रहे। मोह का बंध प्रगाढ़ न हो। धन-परिवार के प्रति मोह न हो। अर्थार्जन में भी नैतिकता, ईमानदारी रहे। ज्यादा पैसा न होना बुरी बात नहीं है, पर संपत्ति गलत तरीकों से इकट्ठी की जाए वह अच्छी बात नहीं। गृहस्थ को अर्थ चाहिए पर अर्थ अनर्थ न बन जाए। अनासक्ति की चेतना है, तो आदमी गलत तरीकों से धनाढ्य बनने का प्रयास भी नहीं करेगा। पैसे का घमंड और गलत कार्यों में दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। पदार्थों की दुनिया में जीना तो है, पर रहो भीतर जीयो बाहर।
अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में आ जाते हैं, तो मानो जीवन में अनासक्त चेतना का विकास हो सकता है, जीवन अच्छा बन सकता है। तन के लिए भोजन हो, भोजन के लिए जीवन नहीं। ललाट अपनी जगह रहे, नाक अपनी जगह रहे। साधना को साध्य का महत्त्व नहीं मिलना चाहिए। धन-भोजन तो हमारे जीवन के साधन हैं। साध्य तो हमारा मोक्ष रहे। अनासक्ति के साथ अहिंसा की चेतना पुष्ट होती रहे। अध्यात्म का संदेश है कि मानव जीवन मिला है तो जीवन का लक्ष्य अच्छा बनाएँ। हम सुखी, समृद्धिवान और शांति में रहें। मोक्ष-सर्व दुःखमुक्ति हमें प्राप्त हो। इसके अनुरूप साधना चले तो आदमी लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकता है। आज अंकलेश्वर आए हैं। यहाँ जैन-अजैन सभी में खूब आध्यात्मिक उन्नयन करने का प्रयास करें। दोनोें क्षेत्रों में समभाव रहे। सभा का रजत जयंती वर्ष चल रहा है। अंकलेश्वर-भरूच में साधु-साध्वियों का अच्छा प्रवास होता रहे। अच्छा विकास होता रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जो व्यक्ति गुरु के दर्शन करता है, वो पुण्य को प्राप्त कर सकता है। तीनों कालों में व्यक्ति को साधु का दर्शन करने से लाभ मिलता है। वर्तमान के पाप नष्ट हो सकते हैं और भविष्य का शुभ अर्जित हो सकता है। पूर्व के पुण्य से ही व्यक्ति को गुरु के दर्शन का लाभ मिलता है। वे व्यक्ति धन्य होते हैं, जिन्हें गुरु के दर्शन प्राप्त होते हैं।
पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सभाध्यक्ष हनुमान एवं तेममं द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। भिक्षु भजन मंडली, अंकलेश्वर, रोटरी क्लब के डी0 गवर्नर श्रीकांत भंडारी, ज्ञानशाला, विनोद भाई धोका (स्थानकवासी समाज), जिनेंद्र कोठारी ने अपनी भावना अभिव्यक्ति की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।